Saturday, September 30, 2017

फए5🚩To:---"Anti Modi Friends"🚩

🚩अगर बैंक की लाइन में "मृत्यु" के "ज़िम्मेदार" #मोदीजी है, तो 1947 #विभाजन के "नरसंहार" का "ज़िंम्मेदार" कौन ???
बस वैसे ही पुछ रहा हुँ ????

🚩अगर बैंक की लाइन में" मृत्यु "के "ज़िम्मेदार" मोदीजी है, तो हजारो "निर्दोष  #सिखो की हत्या" का, "जिम्मेदार" कौन ???
बस वैसे ही पुछ रहा हुँ ??

🚩अगर बैंक की लाइन में "मृत्यु" के "ज़िम्मेदार" मोदीजी है, तो "हज़ारो #कश्मीरी पंडितों" के,"नरसंहार" का "ज़िंम्मेदार" कौन ???
बस वैसे ही पुछ रहा हुँ???

🚩🙏🏼अम्बानी, अदानी, सिंघवी, टाटा, बिरला, माल्या, ललित मोदी........... *ये मोदी के कार्यकाल में #अरबपति बने थे क्या ???*

🚩क्या 85 अरबपतियों को जो "90 हजार करोड़ का #लोन" दिया गया था........  *क्या वो मोदी के समय दिया गया ...??*

🚩जिस भी अफसर के घर "छापा" डाला जाए... तो "करोड़ रुपये" तो उसके #गद्दे के नीचे" ही, मिल जाते है ....... *क्या ये मोदी के काल में कमाए गये ....????*

🚩  *किस हद की मूर्खता पूर्ण देश भर में बातें है .* ????

🚩मोदी के काल में तो - "माल्या के 8000 करोड़" के लोन के जवाब में, "ED ने उसकी 9120 करोड़" की "संम्पत्ति को कब्जे" में ले लिया है .....

🚩*बस यही गलती हुई है, कि मोदी #अकेला भ्रष्ट लोगो" के खिलाफ "लड़" रहा है...* ....

🚩🚩और🚩🚩

🚩  *हमारे देश में "नमक और नमकहराम" दोनों "पर्याप्त मात्रा" में उपलब्ध हैं ....

🚩"व्यक्तिगत" रूप से आप *बीजेपी के विरोधी* हो सकते हैं "बीजेपी की नीतियों के विरोधी" हो सकते हैं ......ये एक सामान्य प्रकिया है.. ..... और इसमें "कुछ गलत" भी, नहीं है......

🚩 परंतु आप,"आलोचक की हद" को पार करके, *घृणित-निंदक* बनकर *PM की आलोचना* कैसे कर सकते हैं...???

🚩 आप,"उस व्यक्ति" की "आलोचना" कर रहे हैं, जो लगभग "15 सालों से CM" के बाद, अब "PM" रहते हुए  भी, #अपनी_सैलेरी_राष्ट्र" को "दान" करता आ रहा है!!!!!

🚩 "PM हाउस" में,"अपना खर्चा स्वं उठाता आ रहा है"..।!!!

🚩🙏🏼 *Pm की निंदा-रस* में डूबते समय, क्या आपको खयाल आया है, कि क्या "आपने कभी 1 महीने की सैलेरी राष्ट्र को दान किया है"...?

🚩   ₹-240 की LPG-Subsidy तो आप छोड़ नहीं पाते, बाकी.. क्या आप में हिम्मत है, 1 साल की "सैलेरी" *राष्ट्र को दान कर दें...?* ???

🚩तो फिर आप उस "व्यक्ति की निंदा"कैसे कर सकते हैं, जो "15 सालों  से ये सब करता आ रहा है"....???

 🚩 3 बार गुजरात का CM रहने के बावजूद, जिसके पास ,कोई *बड़ी संपत्ति नहीं* है, परिवार को भी ,जिसने "VIP सुविधाओं" से "महरूम" कर रखा है ।!!!

🚩जिस PM के "विदेशी दौरों" को  आप सिर्फ ,"घूमने फिरने" का नाम देते हैं ......जबकि "असली उदेश्य" *व्यापारिक समझौते और आपसी सम्बन्ध को सुधारना* होता है।!!!

🚩 एक 66 साल का व्यक्ति- - 6 दिन में 5 देशों की यात्रा करता, 40 "महत्वपूर्ण मीटिंग"में भाग लेता है।

🚩 *देश का पैसा बचाने के लिए* ऐसी "प्लानिंग" करता है, जिससे "होटल में कम से कम रुका जाए"...., और, "फ्लाइट में नींद पूरी की जाये".......

🚩🙏🏼उसके" दौरे को आप सिर्फ भ्रमण का नाम देते हैं"..???

🚩👌*वैश्विक मंदी और ख़राब मौसम की मार*  झेलने की बाद भी,देश पर "आंशिक प्रभाव पड़ा है"......

🚩👌और *देश आगे बढ़ रहा है*, क्या इतना "काफी" नहीं है..????

🚩🙏🏼काँग्रेस द्वारा *60+ सालों से किये गये गड्ढे* क्या 2 साल में भर जायेंगे..???

🚩अभी तक ,"कांग्रेस की सरकारों" से , अगर 25% भी हिसाब माँगा जाता, तो ये दिन देखने नहीं पड़ते.

कितने शर्म की बात है........

🚩🙏🏼एक तरह  जिस व्यक्ति को, *सारा विश्व सम्मान दे रहा है*....

🚩🙏🏼वहीं दूसरी तरफ - "कुछ लोग" (जो उसी देश के हैं) उसी "सम्मान" को," गलत साबित "करने पर तुले हैं......

🚩🙏🏼  निवेदन है कि अपने देश के प्रधानमंत्री की गरिमा को,#मज़बूत_बनायें
🔫सबसे बड़ी बात राजीव गांधी ने कहा था कि हम उपर से विकास के लिए 100पैसे भेजते हैं और विकास में सिर्फ 5 रू लगते हैं तो उस समय केन्द्र और राज्य में किसकी सरकार थी कहाँ गये वो 95 पैसे |यदि वो 95 पैसा मिल जाए तो पेट्रोल 80रू ली करनें की जरूरत ही नहीं पडेगी |
 🚩

Thursday, September 28, 2017

"षड्यंत्र रचने वाले,फ़ैलाने वाले और फायदा उठाने वाले कौन और क्यों"?


भाषण, सेक्स और चैनल

हालात  तो खुला खेल फर्रुखाबादी से आगे के हैं...

दिन शुक्रवार। वक्त दोपहर के चार साढ़े चार का वक्त । प्रधानमंत्री बनारस में मंच पर विराजमान। स्वागत हो रहा है । शाल-दुशाला ऊढ़ाई  जा रही है । भाषणों का दौर शुरु हो चला है। पर हिन्दी के राष्ट्रीय न्यूज चैनल पर हनीप्रीत के अभी तक गायब पूर्व पति विश्वास गुप्ता का कही से पदार्पण हुआ और वह जो भी बोल रहा था, सबकुछ चल रहा था । हनीप्रीत के कपड़ों के भीतर घुसकर। गुरमीत के बेड पर हनीप्रीत । कमरा नहीं हमाम । बाप - बेटी के नाम पर संबंधों के पीछे का काला पन्ना । भक्तों पर कहर और महिला भक्तों की अस्मत से खुला खिलवाड़। सबकुछ लाइव । और एक दो नहीं बल्कि देश के टाप पांच न्यूज चैनलो में बिना ब्रेक । पूरी कमेन्ट्री  किसी बीमार व्यक्ति या ईमानदार व्यक्ति के  बीमार माहौल से निकल कर बीमार समाज का खुला चित्रण । वो तो भला हो कि एएनआई नामक समाचार एजेंसी का, जिसे लगा कि अगर हनीप्रीत की अनंत  कथा  चलती रही तो कोई पीएम को दिखायेगा नहीं । और साढे तीन बजे से शुरु हुई विश्वास गुप्ता की कथा को चार बजकर पैंतीस मिनट पर एएनआई ने काटा तो हर किसी ने देखा अब प्रधानमंत्री मोदी को दिखला दिया जाये। यानी तीन सवालों ने जन्म लिया । पहला , एएनआई की जगह अगर न्यूज चैनलों ने पहले से लाइव की व्यवस्था हनीप्रीत के पूर्व पति की प्रेस कांन्फ्रेस की कर ली होती और पूर्व पति अपनी कथा रात तक कहते रहते तो पीएम मोदी का बनारस दौरा बनारस के भक्त चश्मदीदो के सामने ही शुरु होकर खत्म हो जाता ।

यानी फाइव  कैमरा सेट जो हर एंगल से पीएम मोदी को सडक से मंदिर तक और म्यूजियम से मंच तक लगा था वह सिवाय डीडी के कही दिखायी नहीं देता । दूसरा सवाल एएनआई ने पहले कभी किसी ऐसी लाइव प्रेस कान्फ्रेस को बीच में काटने की नहीं सोची जिसे हर न्यूज चैनल ना सिर्फ चटखारे ले कर दिखा रहा था बल्कि हर चैनल के भीतर पहले से तय सारे कार्यक्रम गिरा अनंतकालीन कथा को ही चलाने  का अनकहा निर्णय भी लिया जा चुका था। और तीसरा सवाल क्या एएनआई ने पीएमओ या पीएम की प्रचार टीम के कहने पर हनीप्रीत के पूर्व पति की उस प्रेस कांन्फ्रेस का लाइव कट कर दिया, जिसमें सेक्स था। थ्रिल था। सस्पेंस था । नाजायज संबंधों से लेकर बीमार होते समाज का वह सबकुछ था, जिसे कोई भी कहता नहीं लेकिन समाज के भीतर के हालात इसी तरह के हो चले हैं। यानी हर दायरे के भीतर का कटघरा इसी तरह सड-गल रहा है । और बेफ्रिक्र समाज किसी अनहोनी से बेहतरी के इंतजार में जिये चला जा रहा है। क्योंकि पीएम बनारस में क्या कहते क्या इसमें किसी की दिलचस्पी नहीं है । या फिर हनीप्रीत के  शरीऱ और गुरमित के रेप की अनकही कथा में समाज की रुचि है । तो संपादकों की पूरी फौज ही हनीप्रीत को दर्शको के सामने परोसने के लिये तैयार है। तो पीएम से किसी को उम्मीद नहीं है या फिर प्रतिस्पर्धा के दौर में जो बिकता  है वही चलता है कि तर्ज पर अब संपादक भी आ चुके है, जिनके कंधों पर टीआरपी ढोने का भार है। हो सकता है। फिर अगला सवाल ये भी है कि अगर ऐसा है तो इस बीमारी को ठीक कौन करेगा। या सभी अपने अपने दायरे में अगर हनीप्रीत हो चुके हैं तो फिर देश संभालने के लिये किसी नेहरु, गांधी , आंबडेकर, लोहिया , सरदार , शयामा प्रसाद मुखर्जी या दीन दयाल उपाध्याय  का जिक्र कर कौन रहा है। या कौन से समाज या कौन सी सत्ता को समाज को संभालने की फिक्र  है। कहीं ऐसा तो नहीं महापुरुषो का जिक्र सियासत सत्ता इसलिये कर रही है कि बीमार समाज की उम्मीदें बनी रहें। या फिर महापुरुषों के आसरे कोई इनकी भी सुन ले। मगर सुधार हो कैसे कोई समझ रहा है या ठीक करना चाह भी रही है । शायद  कोई नहीं ।

तो ऐसे में बहुतेरे सवाल जो चैनलो के स्क्रिन पर रेंगते है या सत्ता के मन की बात में उभरते है उनका मतलब होता क्या है  ?  फिर क्यो फिक्र होती है कि गुरुग्राम में रेयान इंटरनेशनल स्कूल में सात बरस के मासूम की हत्या पर भी स्कूल नहीं रोया । सिर्फ मां-बाप रोये । और जो खौफ में आया वह अपने बच्चो को लेकर संवेदनशील हुआ । फिर क्यों फिक्र हो रही है कि कंगना रनावत के प्यार के एहसासों के साथ रोशन खानदान ने खिलवाड़ किया । क्यों फिक्र होती है कि गाय के नाम पर किसी अखलाख की हत्या हो जाती है। क्यो फिक्र होती है कि लंकेश से लेकर भौमिक की पत्रकारिता सच और विचारधारा की लड़ाई लड़ते हुये मार दिये जाते है । क्यों फिक्र होती है लिचिंग जारी है पर कोई हत्यारा नहीं है । फिक्र क्यों होती है कि पेट्रोल - डिजल की कमाई में सरकार ही लूटती सी दिखायी देती है । फिक्र क्यो होती है बैको में जमा जनता के पैसे पर कारपोरेट रईसी करते है और सरकार अरबो रुपया इनकी रईसी के लिये माफ कर देती है । नियम से  फिक्र होनी नहीं चाहिये जब न्यूज चैनलों पर चलती खबर को लेकर उसके संपादको की मंडली ही खुद को जज माने बैठी हो । और अपने ही चैनल की पट्टी में चलाये  कि किसी को किसी कार्यक्रम से नाराजगी हो या वह गलत लगता हो तो शिकायत करें । तो अपराध करने वाले से शिकायत करेगा कौन और करेगा तो होगा क्या।

और यही हाल हर सत्ता का है । जो ताकतवर है उसका अपराध बताने भी उसी के पास जाना होगा । तो संविधान की शपथ लेकर ईमानदारी या करप्शन ना करने की बात कहने वाले ही अगर बेईमान और अपराधी हो जाये तो फिर शिकायत होगी किससे । सांसद-मंत्री-विधायक -पंचायत सभी जगह तो बेईमानों और अपराधियों की भरमार है । बकायदा कानून के राज में कानूनी तौर पर दागदार है औसत तीस फिसदी जनता के नुमाइंदे। तो फिर सत्ता की अनकही कहानियों को सामने लाने का हक किसे है । और सत्ता की बोली ही अगर जनता ना सुनना चाहे तो सत्ता फिर भी इठलाये कि उसे जनता ने चुना है । और पांच बरस तक वह मनमानी कर सकती है तो फिर अपने अपने दायरे में हर सत्ता मनमानी कर ही रही है । यानी न्याय या कानून का राज तो रहा नहीं । संविधान भी कहा मायने रखेगा । एएनआई की लाउव फुटेज  की तर्ज पर कभी न्यायपालिका किसी को देशद्रोही करार देगी और कभी राष्ट्रीयता का मतलब समझा देगी। और किसी चैनल की तर्ज पर सत्ता - सियासत भी इसे लोकतंत्र का राग बताकर वाह वाह करेगी  । झूठ-फरेब । किस्सागोई । नादानी और अज्ञानता । सबकुछ अपने अपने दायरे में अगर हर सत्ता को टीआरपी दे रही है तो फिर रोकेगा कौन और रुकेगा कौन । और सारे ताकतवर लोगो के नैक्सस का ही तो राज होगा। पीएम उन्हीं संपादको को स्वच्छभारत में शामिल होने को कहेंगे, जिनके लिये हनीप्रीत जरुरी है । संपादक उन्हीं मीडिया  कर्मियो को महत्व देंगे जो हनीप्रीत की गलियों में घूम घूम कर हर दिन नई नई कहानियां गढ़ सकें । और कारपोरेट उन्हीं संपादको और सत्ता को महत्ता देंगे जो बनारस में पीएम के भाषण और हनीप्रीत की अशलीलता तले टीआरपी के खेल को समझता हो। जिससे मुनाफा बनाया जा सके।

यानी देश के सारे नियम ही जब कमाई से जा जुड़े हों। कारपोरेट के सामने हर तिमाही तो सत्ता के सामने हर पांच साल का लक्ष्य हो । तो हर दौर में हर किसी को अपना लाभ ही नजर आयेगा । और अगर सारे हालात मुनाफे से जा जुड़े हैं तो राम-रहीम के डेरे से बेहतर कौन सा फार्मूला किसी भी सत्ता के लिये हो सकता है। और रायसिना हिल्स से लेकर फिल्म सिटी अपने अपने दायरे में किसी डेरे से कम क्यों आंकी जाये ।  और आने वाले वक्त में कोई ये कहने से क्यो कतरायेगा कि जेल से चुनाव तो जार्ज फर्नाडिस ने भी लड़ा तो गुरमित या हरप्रीत क्यो नहीं लड सकते है । या फिर इमरजेन्सी के दौर में जेपी की खबर दिखाने पर रोक थी । लेकिन अभी तो खुलापन है अभिव्यक्ति की आजादी है तो फिर रेपिस्ट गुरमित हो या फरार  हनीप्रीत । या किसी भी अश्लीलता या अपराधी की  खबरे दिखाने पर कोई रोक तो है नहीं । तो खुलेपन के दौर में जिसे जो दिखाना है दिखाये । जिसे जो कहना है कहे । जिसे जितना कहना है कह लें । यानी हर कोई जिम्मेदारी से मुक्त होकर उस मुक्त इकनामी की पीठ पर सवार है जिसमें हर हाल में मुनाफा होना चाहिये । तब तो गुजराती बनियो की  सियासत कह सकती है गुजराती बनिया तो महात्मा गांधी भी थे , ये उनकी समझ थी कि उनके लिये देश की जनता का जमावडा अग्रेजो से लोहा लेने का हथियार था । मौजूदा सच तो पार्टी का कार्यक्त्ता  बनाकर वोट जुगाडना  ही है । तो फिर देश का कोई भी मुद्दा हो उसकी अहमियत किसी ऐसी कहानी के आगे कहां टिकेगी जिसमें किस्सागोई राग दरबारी से आगे का हो । प्रेमचंद के कफन पर मस्तराम की किताब हावी हो । और लोकतंत्र के राग का आदर्श  फिल्मी न्यूटन की ईमानदारी के आगे घुटने टेकते हुये नजर आये। और ऐलान हो जाये कि 2019 में पीएम उम्मीदवार न्यूटन होगा  अगर वह आस्कार जीत जाये तो । या फिर हनीप्रीत होगी जिसे भारत की पुलिस के सुरक्षाकर्मी खोज नहीं पाये । यानी लोकप्रीय होना ही अगर देश संभालने का पैमाना हो तो लोकप्रियता का पैमाना तो कुछ भी हो सकता है ।  जिसकी लोकप्रियता होगी । जिसे सबसे ज्यादा दर्शक देखाना चाहता होंगे वही देश चलायेंगे। क्या हालात वाकई ऐसे हैं ? सोचियेगा जरुर।


प्रिय मित्रो ! 
                    सादर नमस्कार !
                                       कुशलता के आदान-प्रदान पश्चात् समाचार ये है कि हमारे इस ब्लॉग में ज्वलन्त विषयों पर लेख-टिप्पणियां होती हैं।जो मित्र पढ़ने में रूचि रखते हों,अवश्य पढ़ें,फिर अपने मित्रों को शेयर करें और अपने अनमोल कॉमेंट्स भी रोज़ाना लिख्खा करें।इसका लिंक ये है - www.pitamberduttsharma.blogspot.com. मुझसे संपर्क करने हेतु मेरा ई मेल एड्रेस ये है - pitamberdutt.sharma@gmail.com. मेरा मोबाईल नम्बर ये है - 9414657511. सधन्यवाद ! आपका अपना मित्र पीताम्बर दत्त शर्मा,1/120,आवासन मंडल कालोनी,वार्ड नम्बर 10,सूरतगढ़।जिला श्रीगंगानगर,राज. भारत 

Friday, September 22, 2017

"मीडिया"जो आजकल अपनी बुद्धि से नहीं चलता ? - पीताम्बर दत्त शर्मा {लेखक-विश्लेषक}

किसी ज़माने में पत्रकारों को "ब्राह्मण"का दर्ज़ा दिया जाता था और उनके कार्य को "ब्रह्मणत्व"का ! क्योंकि इनके कार्य समाज,देश और विश्व का कल्याण होता था !आदर्श स्थापित करते थे विद्वान लेखक,कवि,कहानीकार ,इतिहासकार और आदरणीय पत्रकार - सम्पादक लोग !एंकर लोगों का उस समय प्रादुर्भाव नहीं हुआ था !केवल जीवन-यापन में अपेक्षित धन व अन्य साधनों की आवश्यकता ऐसे लोगों को पड़ती थी !रहन-सहन परिवार का पालन भी बड़ा ही साधारण होता था !जीवन में केवल "मूल्यों"की ही कदर होती थी !शक्ल-सूरत कपड़ों-कोठियों या वातानुकूलित कार्यालयों की नहीं !अच्छे,समाज सुधारक और धार्मिक विषयों को महत्व दिया जाता था और दुर्घटनाओं और सामाजिक विकारों-अपराधों को कम स्थान दिया जाता और संक्षिप्त किया जाता था !
                       आज देखिये ! हमारा मीडिया क्या कर रहा है !ये भी "शूद्र" हो गया है !इसे भी गंदे लोगों का "संरक्षण-आरक्षण"प्राप्त है !इसीलिए ये किसी की परवाह नहीं करता !ज़हर उगल रहा है ,ज़हर बो रहा है और ज़हर की फसल से देश-धर्म को गंदा करता ही जा रहा है !इसमें भी ग्रुप बन गए हैं !इसमें भी गद्दार और देश के दुश्मन पैदा हो गए हैं !सरकारें आज कीं भी डरतीं हैं इनसे !क्योंकि ये भारत के विरोध की ख़बरें पहले गढ़ते हैं ,फिर उन्हीं समाचारों का हवाला विपक्ष विदेशों में जाकर दोहराता है और दोबारा फिर ये लोग उन्हीं बातों को नमक-मिर्च लगाकर परोसते हैं !इन्हीं विषयों को फिर भारत के दुश्मन देश संयुक्त राज्य की सभा में बोलते हैं ,इस तरह से एक सोची समझी चाल के तहत देश को गर्त में पंहुचने का काम हमारा ये मीडिया करता है आजकल !
                              सब जानते हैं ! कुछ पत्रकार लोग ये समझ गए हैं और ऐसे लोगों से अलग भी हो गए हैं !लेकिन सरकार ने अगर जल्द से जल्द इनपर सख्त कार्यवाही नहीं करी  तो देश की जड़ें कमज़ोर होने में वक़्त नहीं लगेगा ! जागो !! इससे पहले कि देर ही हो जाए !!!!!
                          ऐसे चैनलों को देखना और अख़बारों को पढ़ना छोडो !तभी ये बिकने की स्थिति में आएंगे !आखिर कौन है इन लोगों के पीछे ???कौन इनको पोषित कर रहा है ????क्यों देश का क़ानून इन पर हाथ नहीं डाल पा रहा ???हैरान हूँ मैं ,परेशान हूँ मैं !! और आप ??????

                           
प्रिय मित्रो ! 
                    सादर नमस्कार !
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Monday, September 18, 2017

" परेशान है हर कोई " क्यों ? - पीताम्बर दत्त शर्मा {लेखक-विश्लेषक}

भारत ,जिसकी संस्कृति में ही ये सिखाया जाता है कि अपने आप से ज्यादा दूसरों की चिंता करो ! दूसरों पर दया करो !अपने हिस्से के भोजन में से किसी दूसरे नर,पशु पक्षी मेहमान,पीड़ित और संत को पहले भोजन कराओ ! वनस्पतियों को बचने हेतु उन्हें जल व खाद दो ! आदि आदि ! लेकिन पाश्चात्य संस्कृति ये सिखाती है की कुछ भी हो जाए पहले स्वयं का "स्वार्थ"पूरा करो ,बाद में अगर तुम्हारे पास समय,धन और दूसरे स्रोत ज्यादा हैं और उसमे कोई फायदा भी है तो उसे जता-जता कर थोड़ा थोड़ा दो ! एक संस्कृति तीसरी भी है,जिसे राक्षसी सभ्यता कहा जाता है , उसके अनुसार अपने फायदे हेतु हर वस्तु को छीनलो ,चुरालो या लूटलो ,सब जायज़ है चाहे किसी का कत्ल ही क्यों ना करना पड़े !?
                        आज हर शख्स परेशान सा नज़र आता है ,लेकिन उसकी परेशानी के ऐसे ऐसे कारण हैं कि जैसे लगता है कि परेशां रहना उसका शुगल है !कइयों को परेशां रहने और दूसरों को परेशान करने में भी मज़ा आता है !जैसे हमारा मीडिया ! अख़बार हों या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ,सोशल मीडिया हो या लेखक,कवि ,सब सुबह से लेकर परेशां करने वाली बातें ही बताएँगे! ना जाने किस गधे ने इन्हें ये पढ़ाया है कि नकरात्मक विषय ही जनता को भाते हैं ? फिर ऊपर से तुर्रा ये कि बार बार महीनों तलक विषय को नहीं छोड़ते !
                  दूसरी तरफ देखो तो हम अपने दुःख से ज्यादा दूसरे के सुख से दुखी रहते हैं ! या फिर एक दूसरे से !नेता से जनता परेशान ,तो जनता से अफसर परेशां,अफसरों से बाबू परेशान तो बाबुओं से अध्यापक-कर्मचारी परेशान ,अध्यापकों से छात्र परेशान तो छात्रों से छात्राएं परेशान !छात्राओं से अभिभावक परेशान !मतलब जिधर देखो परेशान लोग ही दिखाई देंगे आपको !सभी किसी बड़े सुख की तलाश में भटक रहे हैं !इस बड़े सुख के चक्कर में इंसान छोटे छोटे सुखों का मज़ा लेना भूल जाता है ! जैसे कोई रोमांटिक गाना गाकर भी आनंदित हुआ जा सकता है ,लेकिन नहीं गाएंगे !डिप्रेशन में चले जाएंगे हज़ारों की दवाइयां खा जायेंगे ,लेकिन दूसरों को चुटकुले नहीं सुनाएंगे !एक ग़ज़लकार ने क्या खूब लिखा है कि -"इस शहर में हर शख्स परेशां सा क्यों है....!? आईना हमें देखकर हैरान सा क्यों है....!
                     सभी से निवेदन कृपया आनंद से रहें और रहने दें !जय हिन्द कहें या वन्दे -मातरम !!

प्रिय मित्रो ! 
                    सादर नमस्कार !
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Tuesday, September 12, 2017

"विद्यालय बने कत्लखाने "!!

मां-बाप क्या करें ? जब हर जिम्मेदारी से है मुक्त चुनी हुई सरकार

तो सुप्रीम कोर्ट को ही तय करना है कि देश कैसे चले। क्योंकि चुनी हुई सरकारों ने हर जिम्मेदारी से खुद को मुक्त कर लिया है। तो फिर शिक्षा भी बिजनेस है। स्वास्थ्य सेवा भी धंधा है। और घर तो लूट पर जा टिका है। ऐसे में जिम्मेदारी से मुक्त सरकारों को नोटिस थमाने से आगे और संविधान की लक्ष्मण रेखा पार न करने की हिदायत से आगे सुप्रीम कोर्ट जा नहीं सकता। और नोटिस पर सरकारी जवाब सियासी जरुरतो की तिकड़मों से पार पा नहीं सकता। तो होगा क्या। सरकारी शिक्षा फेल होगी। प्राइवेट स्कूल कुकुरमुत्ते की  तरह फले-फुलेंगे। सरकारी हेल्थ सर्विस फेल होगी। निजी अस्पताल मुनाफे पर इलाज करेंगे। घर बिल्डर देगा। तो घर के लिये फ्लैटधारकों की जिन्दगी बिल्डर के दरवाजे पर बंधक होगी। यानी जीने के अधिकार के तहत ही जब न्यूनतम जरुरत शिक्षा, स्वास्थ्य और घर तक से चुनी हुई सरकारें पल्ला झाड़ चुकी हो तब सिवाय लूट के होगा क्या सियासत लूट के कानून को बनाने के अलावा करेंगी क्या। और सुप्रीम कोर्ट सिवाय संवैधानिक व्याख्या के करेगा क्या। हालात ये है कि 18 करोड़ स्कूल जाने वाले बच्चो में 7 करोड़ बच्चों का भविष्य निजी स्कूलों के हाथो में है। सरकार का शिक्षा बजट 46,356 करोड़ है तो निजी स्कूलों का बजट 8 लाख करोड से ज्यादा है। यानी देश की न्यूनतम जरुरत, शिक्षा भी सरकार नहीं बाजार देता है। जिसके पास जितना पैसा। और पैसे के साथ उन्हीं नेताओं की पैरवी, जो जिम्मेदारी मुक्त है। और तो और नेताओ के बडी कतार चाहे सरकारी स्कूल में बेसिक इन्फ्रस्ट्रक्चर ना दे पाती हो लेकिन उनके अपने प्राईवेट स्कूल खूब बेहतरीन हैं। इसीलिये निजी  स्कूलों की कमाई सरकारी स्कूलो के बजट से करीब सौगुना ज्यादा है। तो मां-बाप क्या करें । सुप्रीम कोर्ट के नोटिस पर 21 दिन बाद आने वाले जवाब का इंतजार करें । 

और इस बीच चंद दिनो पहले की खबर की तरह खबर आ जाये कि गोरखपुर में 125 बच्चे । तो फर्रुखाबाद में 38 और सैफई में 98 बच्चे मर  गये। बांसवाडा में भी 90 बच्चे मर गये। ये सच बीते दो महीने का है तो मां-बाप शिक्षा के साथ अब बच्चो के जिन्दा रहने के लिये इलाज की तालाश में भटके। और इलाज का आलम ये है कि 100 करोड जनसंख्या जिस सरकारी इलाज पर टिकी है उसके लिये बजट 41,878 करोड का है। 25 करोड नागरिकों के लिये प्राइवेट इलाज की इंडस्ट्री 6,50,000 करोड पार कर चुकी है। यानी इलाज की जगह सरकारी अस्पतालो में मौत और मौत की एवज में करोड रुपये का मुनाफा।  तो दुनिया में भारत ही एकमात्र एसा देश है जहा शिक्षा और हेल्थ सर्विस का सिर्फ निजीकरण हो चला है बल्कि सबसे मुनाफे वाली इडस्ट्री की तौर पर शिक्षा और हेल्थ ही है। तो मां-बाप क्या करें। जब शिक्षा के नाम पर  कत्ल हो जाये । इलाज की एवज में मौत मिले। और एक अदद घर के लिये खुद को ही बिल्डर के हाथो रखने की स्थिति आ जाये और चुनी हुई सरकार पल्ला झाड ले तो फिर सुप्रीम कोर्ट का ये कहना भर आक्सीजन का काम करता है कि , " बैंक बिल्डर का नहीं फ्लैटधारको को फ्लैट दिलाने पर ध्यान दें। बिल्डर डूबता है तो डूबने दें।" तो जो बात सुप्रीम कोर्ट संविधान की व्यख्या करते हुये कह सकता है उसके चुनी हुई सरकारे सत्ता भोगते हुये लागू नहीं कर  सकती। क्योंकि सवाल बच्चो की मौत के साथ हर पल मां बाप के मर के जीने का भी होता है। इसीलिये गुरुग्राम के श्यामकुंज की गली नं 2 में जब नजर कत्ल किये जा चुके प्रद्यु्म्न 50 गज के घर पर पडती है तो कई सवाल हर जहन  में रेंगते है। क्योंकि पूरी कालोनी जिस त्रासदी को समेटे प्रद्युम्न की मां ज्योति ठाकुर को सांतवना देने की जगह खुद के बच्चे की तस्वीर आंखों  में समेटे है। वह मौजूदा सिस्टम के सामने सवाल तो हैं। क्योंकि बच्चे का कत्ल ही नहीं बल्कि सिर्फ बच्चे को पालने के आसरे पूरा परिवार कैसे जिन्दगी जीता है उसकी तस्वीर ही प्रद्युम्न के घर पर मातम के बीच खामोशी तले पसरी हुई है। 

और फैलते महानगरो में हाशिये पर पड़े लोगों के बीच देश के किसी भी हिस्से में चले जाइये इस तरह पचास गज की जमीन पर घर बनाकर बच्चो को बेहतर जिन्दगी देने की एवज में खुद जिन्दगी से दो दो हाथ करते  परिवार आपको दिखायी दे जायेगें । और बच्चो को पढाने के नाम पर इन्हीं परिवारो की जेब में डाका ढाल कर इस देश में सालाना दो लाख करोड़ की फिस-डोनेशन प्राइवेट स्कूलों से ली जाती है।  सबसे ज्यादा जमीन शिक्षा के  नाम पर प्राईवेट-कान्वेंट स्कूल को मिल गई। सिर्फ एक रुपये की लीज पर। तीस बरस के लिये। इसी दौर में प्राइवेट शिक्षा का बजट देश के शिक्षा बजट से 17 गुना ज्यादा का हो गया।  तो जो परिवार रेयान स्कूल में कत्ल के बाद फूट पडे । उन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चो को मां-बाप के लिये चुनी हुई सरकारें क्या वाकई कुछ सोचती भी हैं। क्योंकि आज का सच यही है कि प्राइवेट स्कूलों की फीस भरने में मां-बाप की कमर दोहरी हो रही है। एसोचैम का सर्वे कहता है कि बीते चार साल में निजी स्कूलों की फीस 100 से 120 फीसदी बढ़ गई है । प्राइवेट स्कूलों की फीस हर साल औसतन 10 से 20 फीसदी बढ़ाई जाती है । बच्चो की पढाई को लेकर मंहगाई मायने नही रखती । स्कूलो की मनमानी पर कोई रोक लगती नहीं । मसलन महानगरो में एक बच्चे को पढाने का सालाना खर्च किस रफ्तार से बढा । उसका आलम ये है कि 2005 में 60 हजार । 2011 में 1 लाख बीस हजार । तो 2016 में 1 लाख 80 हजार सालाना हो चुका है।यानी महानगरो में किसी परिवार से पूछियेगा कि एक ही बच्चा क्यों तो जवाब यही आयेगा कि दूसरे बच्चे को पैदा तो कर लेंगे लेकिन पढायेंगे कैसे । यानी बच्चो की पढाई परिवार की वजह से पहचाने वाले देश में परिवार को ही खत्म कर रही है । लेकिन सिर्फ प्राइवेट स्कूल ही क्यो । पढाई के लिये ट्यूशन एक दूसरी ऐसी इंडस्ट्री है जिसके लिये स्कूल ही जोर डालते है । आलम ये है कि देश का शिक्षा बजट 46,356 करोड का है । और  ट्यूशन इंडस्ट्री तीन लाख करोड़ रुपए पार कर चुकी है । एसोचैम का सर्वे कहता है कि महानगरों में प्राइमरी स्कूल के 87 फीसदी छात्र और हाई स्कूल के 95 फीसदी छात्र निजी ट्यूशन लेते हैं । महानगरों में प्राइवेट ट्यूटर एक क्लास के एक हजार रुपए से चार हजार रुपए वसूलते हैं जबकि ग्रुप ट्यूशन की फीस औसतन 1000 रुपए से छह हजार रुपए के बीच है । यानी दो जून की रोटी में

मरे जा रहे देश में नौनिहालो की पढाई से लेकर इलाज तक की जिम्मेदारी से चुनी हुई सरकारे ही मुक्त है ।  क्योकि देश की त्रासदी उस कत्ल में जा उलझी है जिसका आरोपी दोषी नहीं है और दोषी आरोपी नहीं है क्योकि उसकी ताकत राजनीतिक सत्ता के करीब है । जब काग्रेस सत्ता में तो कांग्रेस के करीब और अब बीजेपी सत्ता में तो बीजेपी के करीब रेयान इंटरनेशनल की एमडी ग्रेस पिंटो । यू देश का सच तो ये भी है कि देश के 40 फीसदी निजी स्कूलों या शैक्षिक संस्थानों के मालिक राजनीतिक दलों से जुड़े हैं । बाकि अपने ताल्लुकात राजनीति सत्ता से रखते है । क्योंकि ध्यान दीजिए तो डीवाई पाटील,शरद पवार, सलमान खुर्शीद, छगन भुजबल, जगदंबिका पाल, जी विश्वानाथन,ज्योतिरादित्य सिंधिया, शिवपाल यादव, मनोहर जोशी,अखिलेश दास गुप्ता,सतीश मिश्रा जैसे नेताओं की लंबी फेहरिस्त है,जिनके स्कूल हैं या जो स्कूल मैनजमेंट में सीधे तौर पर शामिल हैं ।तमिलनाडु में तो 50 फीसदी से ज्यादा शैक्षिक संस्थान राजनेताओं के हैं । महाराष्ट्र में भी 40 से

50 फीसदी स्कूल राजनेताओं के हैं तो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी यही हाल है । दरअसल, शिक्षा अब एक ऐसा धंधा है, जिसमें कभी मंदी नहीं आती। स्कूल की मंजूरी से लेकर स्कूल के लिए तमाम दूसरी सरकारी सुविधाएं लेना राजनेताओं के लिए अपेक्षाकृत आसान होता है और स्कूल चलाने के लिए जिस मसल पावर की जरुरत होती है-वो राजनेताओं के पास होती ही है। तो एक बच्चे की हत्या के बाद मचे बवाल से सिस्टम ठीक होगा यही ना देखियेगा । कुछ वक्त बाद परखियेगा रेयान इंटरनेशनल स्कूल में 7 बरस के बच्चे की हत्या ने किस किस को लाभ पहुंचाया।







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Saturday, September 9, 2017

"एक बार फिर गब्बर रिटर्न" !? - पीताम्बर दत्त शर्मा {लेखक-विश्लेषक}

"गब्बर सिंह डाकू जब पहली बार आया था तो उसने अपना अड्डा रामपुर गाँव में बसाया था !मैला-कुचैला,गन्दा सा दिखने वाला था !उसने ना जाने कितने निर्दोष लोगों और "खबरियों" को मौत के घाट उतारा था !तब उसका एक डायलॉग बड़ा ही मशहूर हुआ था कि "जिस भी गाँव में कोई बच्चा रोता है,तो माँ कहती है सो जा बीटा नहीं तो गब्बर आ जाएगा "!!दूसरी बार गब्बर आया तो वो एक बड़े शहर का पढ़ा-लिखा प्राध्यापक बना जो अपने कॉलेज के पूर्व छात्रों की मदद से शहरों में डाक्टरों,नेताओं,पत्रकारों और अफसरों के रूप में रह रहे डाकुओं को कह कहके मारता है ! एक बड़े हीरो के अवतार में आता है ! अब तीसरी बार वो एकबार फिर भारत में आया है ! इसबार वो काश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक के मुख से प्रकट हुआ है ! जो देश की जांच एजेंसियों के बहाने हमारे प्रधानमंत्री जी को "गब्बर सिंह"कहके पुकार रहा था ,अपने आकाओं को शायद कोई "ईशारा"करना चाहता था ! हमारी सुरक्षा एजेंसियों को चाहिए कि  वो जिस प्रकार दूसरे कोर्डवर्डों डिकोड करते हैं ,उसी तरह इसे भी डिकोड करके इनके भेद को खोलें ताकि देश का ज्यादा नुकसान ना हो !
                      एक घातक वामपंथी विचारधारा वाली पत्रकार की ना जाने किसने हत्या करदी ,जो दुखद और निंदनीय घृणित कार्य था निस्संदेह ,लेकिन उसके हितैषी मीडिया और नेताओं ने जल्दबाज़ी में "गब्बर सिंह"का रूप धरलिया !सुना दिया निर्णय कि "क्योंकि वो आरएसएस व भाजपा विरोधी लेखिका थी इसलिए इन्होने ही उसे मरवाया है ! दो दिन तक ये अत्याचार होता रहा बेचारे हिन्दुओं पर !लाख सफाइयां दी गयीं लेकिन वे कहाँ मानने वाले थे ?सो भाई लोग लगे रहे वैचारिक रूप से क़त्ल करने में !अब कह रहे हैं कि हमने ऐसा नहीं कहा और वैसा नहीं कहा !
                   एक गब्बर सिंह कांग्रेस में भी हैं जिन्हें लोग "द्विग्विजय सिंह"जी के रूप में भी जानते हैं ! पहले तो ये सज्जन बड़े समझदार हुआ करते थे !लेकिन पिछले काफी समय से ये उल-जलूल हरकतें करते रहते हैं !इन्होने माननीय प्रधानमंत्री जी को भी गाली वाला किसी का ट्वीट रीट्वीट कर दिया !गंदे लोगों की तरह !
                                कैसा समय आ गया है ! गुरुग्राम में एक 7 वर्षीय अबोध बालक को रेयान पब्लिक स्कूल के बस कंडक्टर ने जान से मार दिया क्योंकि बालक ने कुकर्म नहीं करने दिया ! वो भी सुबह 8 बजे के आसपास !जगह जगह पर कैमरे लगे थे,दर्जनों व्यक्तियों का स्टाफ था किसी को कुछ दिखाई नहीं दिया !स्कूल के मालिकों को हर बार बचने की कोशिश पता नहीं क्यों होती है हर बार !इनके लाइसेंस क्यों नहीं रद्द होते ?ये कहीं भी पढ़ा नहीं सकें ,कुछ ऐसी सजा मिले तो शायद अक्ल आये !?
                           "गब्बर सिंह"यानिकि बुराई हम सब में कभी न कभी आती है ! लेकिन शिक्षा हमें इसीलिए दी जाती है ताकि हम उस गंदे समय में ज्यादा बड़े राक्षस ना बनें और हमें जल्दी से जल्दी सद्बुद्धि आ जाए !लेकिन शिक्षा के मंदिर में ही शिक्षा पाने की इतनी बड़ी सज़ा किसी अबोध बालक को मिल जाए ! ये बर्दाश्त से बाहर है जी ! 
 हे भगवान् !!"आपकी मर्ज़ी के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता"?तो फिर ये सब क्यों ???? तुम कहोगे कि कर्मों का फल है ये !हम इतनी दूर बैठे दुखी हो रहे हैं तो क्या हमने भी कोई बुरे कर्म किएहैं क्या ?कसम से कलसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा ! भगवन उसके परिवार को ये दुःख सहने की क्षमता प्रदान करें !और उस बहादुर बच्चे जिसने जान देदी लेकिन दुष्कर्म नहीं होने दिया को अपने चरणों में स्थान दे ! अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ !
    








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Wednesday, September 6, 2017

" विचारधारा के नाम क्यों लगाए हमारे अपराध और कत्ल"? - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

कर्नाटका में एक प्रसिद्ध पत्रकार महिला "गौरी लंकेश जी की निर्मम हत्या कर दी गयी कल रात को !वे एक कन्नड़ पत्रिका की सम्पादक थीं ! उन्हें मैं अपनी संवेदनाएं प्रकट करते हुए श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूँ !बड़े ही दुःख के साथ मैं ये लिख रहा हूँ कि वहां की सरकार कानून-व्यवस्था को दुरुस्त नहीं रख पायी ! जो हमला योजना बनाकर ,सोच-समझ कर किया जाता है ,उसे रोक पाना किसी भी सरकार के लिए मुश्किल ही होता है ,ये भी हमें मान लेना चाहिए !गौरी जी ने अपने पत्रकारिता के जीवन में ना जाने कितने बेईमानों के खिलाफ संघर्ष किया !ख़बरें छापीं ,स्टोरियां लिखीं,भेद खोले और केस भी लडे ! हार-जित जीवन का अंग होता है सो हारीं भी और जीतीं भी !एक विशेष विचारधारा के लोगों को लगता था कि वो उनकी पक्षधर हैं ,उन्हीं लोगों को ये भी लगता था कि वे तथाकथित "कटटर दक्षिण-पंथी विचार-धारा"की विरोधीं थीं क्योंकि वे लोग विरोधी थे !
                समस्या यहीं से शुरू होती है हमेशां ही ,जब हम किसी का उत्तर या विचार जाने बिना ही अपने दिमाग से किसी दूसरे का उत्तर या विचार अपने दिमाग में न केवल तैयार कर लेते हैं बल्कि निर्णय भी सुना देते हैं !लिखे होंगे उन्होंने आरएसएस और भाजपा के खिलाफ कई लेख ,खोले होन्गे कई घोटालों के राज़ और दिए होने कई वक्तव्य या भाषण ,तो ये कैसे मान लिया जाए कि वो भाजपा की विरोधी थीं जन्म से ही या अंत तलक विरोधी ही रहतीं !?ऐसे ही भाजपा या आरएसएस कैसे उनकी इतनी विरोधी हो गयी कि उनका कत्ल ही करवा दिया जाए !?ना केवल उनका कॉमरेड और कोंग्रेसियों की मानें तो सभी पत्रकारों और गांधी जी का कत्ल भी भाजपा ने ही करवाया है ,ऐसा कैसे हो सकता है ?विरोध करना या होना अलग बात है और कत्ल जैसा जघन्य अपराध करना अलग बात है ! इसलिए मैं नहीं मानता की ये कत्ल किसी राजनितिक दल या संगठन ने करवाए हैं !
                     वो ज़माना गया जब 1947 में कांग्रेस,मुस्लिम लीग और कम्युनिस्टों ने हिन्दुओं को मरवाया था !क्योंकि इनकी विचारधारा विदेशी सभ्यता पर टिकी हुई है !कांग्रेस ने अंग्रेज़ों से और कम्युनिस्टों ने लेनिन आदि विदेशी नेताओं को पढ़कर हत्याएं करना सीखा था !इसीलिए केरल और बंगाल में ऐसी घटनाएं आज भी होती रहती हैं !आजकल का मीडिया भी अपने चेनेल चलने के चक्क्र में राहुल गांधी और छुटभैये नेताओं के बेवकूफियों से भरे बयान और बहस ऐसे दिखता है जैसे ये बड़ी पंहुची हुई चीज़ हों ! आज राहुल गांधी को भला कौन महत्त्व देता है ?लेकिन कल से वामपंथी और कोंग्रेसी विचारधारा से पैदा हुए चेनेल और एंकर निर्णय सुना रहे हैं !जैसे सारी जांच हो गयी हो सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आआ गया हो ! हद्द है बेवकूफियों की भी यारो !पिछले 7 सालों में बारह पत्रकार मारे गए हैं जिनमे से दस किसी ना किसी गैंग से दुश्मनी की वजह से मारे गए !लेकिन ये आरोप लगाकर भाजपा विरोधी माहौल बनाये जा रहे हैं !गंदी और पक्षपाती पत्रकारिता ही भारत में आधे से ज्यादा अपराधों की जननी है ! कानून अपना काम करेगा ,जो दोषी होगा सजा पायेगा !लेकिन अभी कई दिन ndtv का रविश कुमार अवश्य रोयेगा क्योंकि अगर वो कन्हैया की मम्मी जैसी थी तो उनकी भी बहन होगी ही !मेरी भी बहन ही थी !लेकिन मेरे रोनर और उनके रोनर में फ़र्क़ साफ़ दिखेगा आपको !क्योंकि मैं jnu जैसी यूनिवर्सिटी में नहीं पढ़ा !मैं समझता हूँ की कातिल कोई विचारधारा नहीं केवल अपराधी व्यक्ति ही होता है जो पाप करता है !अंत में एकबार फिर श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ !








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Saturday, September 2, 2017

"फन्दे में भगवान और आम इन्सान" ! - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

भगवान ने कहा था कि मैं तो भक्त के वश में रहता हूँ ! तो "भस्मासुर"ने योजना बनाई कि क्यों न सच में भगवान को अपने वाश में कर लूँ ? उसने तपस्या की और वरदान में ये मांग लिया कि "मैं जिसके भी सिर पे अपना हाथ रख दूँ ,वो भस्म हो जाए"!भगवान भोलेनाथ ने तथास्तु बोल दिया ! तो उस राक्षस ने सोचा कि क्यों न इस वरदान को परख लिया जाए !! कहीं ये झूठ ही ना हो !तो उसने बिना कोई देर किये शंकर जी के सर पे ही अपना हाथ रखना चाहा तो भोलेनाथ भागे अपनी जान बचाने हेतु !भगवान विष्णु ने चतुराई से सुंदर स्त्री का रूप धरा और नृत्य की भंगिमाओं में उलझाकर उसे भस्म किया !तब कहीं भोले नाथ की सांस में सांस आयी !
            लेकिन ऐसा समय समय पर देखने को मिलता रहता है कि भगवान आज तलक कई बार इंसान रूपी राक्षस के फंदे में फंसते रहते हैं और फिर विष्णु कोई रूप धारण कर उन्हें निकालता है ! बड़ी लम्बी लिस्ट है ऐसे कुकर्मियों की !आज के इंसान और प्रशासन  का इनके झांसे में आ जाना तो मामूली बात है !भगवान के नियमों को धत्ता बताकर अपने नियम क़ानून बना लेते हैं ये लोग ! रावण ,कंस,हरिण्यकश्यप से लेकर आसाराम,रामपाल और बाबा गुरमीत सिंह तक सब अपने आपको खुदा बना लेते हैं और इनके "विशेष चेले"इनकी जो कहानियां सुनते हैं कि पूछिए मत!इंसान "सम्मोहित"सा वैसा ही करने लग जाता है ,जो उसे फिर कहा जाने लगता है !उसकी तंद्रा तब टूटती है जब बहुत अनर्थ हो चुका होता है ! जन-धन का नुकसान हो चुका होता है !
            सनातन धर्म के ग्रंथों ने जो कहा ,देवी-देवताओं ने जो कहा और उनके जीवन से जो शिक्षा मिली,वैसा इस इंसान ने बिलकुल भी नहीं किया ! जैसा अल्लाह,ईसामसीह,जैन,बुद्ध,पारसी,और सिक्ख गुरओं ने कहा ,वैसा तो इनके अनुयायियों ने बिलकुल नहीं किया व ना ही वैसा जीवन जीने की कोई इनकी संभावना है !आज का इंसान तो हर बात में अपना फायदा ढूंढता है !हर बात को वैसे ही तोड़-मरोड़ लेता है जिधर उसका फायदा होता हो !तो दोषी केवल वो ठग गुरु ही नहीं हैं ,बल्कि दोषी वे लोग भी हैं जो काम मूल्य में भौतिक वस्तुओं का "पान" करने वहा बार बार जाते हैं !लालच ही हर बुराई की जड़ में होता है !
         नेता हो या संत ,परिवार हो या मोहल्ला ,जब आपने अपने कर्तव्य स्वयं पुरे ना करके दूसरों पर भरोसा करना शुरू करते हैं !बस !!तभी से आप ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी समझो मार ली !आपके दुर्दिन बस तभी से शुरू हो जाते हैं !आपको तब कोई नहीं बचा सकता ! कोई क़ानून या कोई सरकार तब आपके आड़े नहीं आता !यही कारण है की हम जीवन के ज्यादातर हिस्से में दुखी ही रहते हैं !हमारा मीडिया तो एक गन्दा व्यवसाय बनकर रह गया है !इसको ना तो किसी के दुक्ख से कोई मतलब है और ना ही किसी के सुख से !इसने तो वही दिखाना और छापना है जिससे इसके मालिक को करोड़ों रुपया बने !किसी धर्म,कर्तव्य और न्याय की आस इनसे भी मत रखना !वो जमाना गया जब पत्रकार लोग सच के लिए कुर्बान हो जाय करते थे !फिर भी हम सबको जय हिन्द जय भारत और वनडे मातरम तो बोलना ही पड़ेगा !! क्योंकि आस पर ही जहां टिका है !कोई आएगा.....!!ये लीजिये मैं भी दूसरे पर आश्रित होने का कह रहा हूँ यारो !हूँ ना मैं भी ......!!     





                                                         प्रिय "5TH पिल्लर करप्शन किल्लर"नामक ब्लॉग के पाठक मित्रो !सादर प्यारभरा नमस्कार ! वो ब्लॉग जिसे आप रोजाना पढना,शेयर करना और कोमेंट करना चाहेंगे !
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"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...