Friday, March 31, 2017

"दीवारें,बेड़ियाँ,हथकड़ियाँ,समाज-धर्म के ये ,नियम और क़ानून"बना दिया हमें "फूल"?- पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)मो.न. +9414657511.

क्या अंग्रेजों के रोमियो-जूलिएट जैसे आशिक और क्या भारतीय उपमहाद्वीप के हीर - राँझा ,लैला-मजनू,ससि-पुन्नू और सिरी-फरहाद जैसे आशिकों से लेकर आजकल के आधुनिक "डूड",सभी इसी बात को लेकर परेशान ही रहे कि समाज उन्हें आखिर "प्यार"करने क्यों नहीं देता ?तरीके बदल गए रोकने के लेकिन आज भी दीवारें कड़ी कर दी जाती हैं,बेड़ियाँ समाज-धर्म के नाम की तरहतरह के क़ानून बना कर पहना दी जाती हैं !इस समाज के द्वारा !
                                       उनके समर्थक तब भी थे और आज भी हैं "जे. एन. यू." आदि में !उनके विरोधी तब भी थे "मौलवी-ब्राह्मण के रूप में और आज भी हैं "योगी-फतवों"के रूप में !तो क्या हम आज भी वहीँ खड़े हैं जहां तब थे ??कहाँ है 21वीं सदी के लोग और तथाकथित "आधुनिक"लोग ?प्यार के पक्ष में कोई बोलता क्यों नहीं?क्या वयस्क हो जाने के बाद "तन-मन-धन"से प्यार करना गलत है ?क्या बहार के मौसम में दो प्रेमियों का "गुटरगूं"करना गलत है ?कल एक मित्र मुझसे समाचार पत्र पढ़ते पढ़ते पूछने लगा कि "फूल खिले हैं गुलशन-गुलशन,या ,गुलशन में "फूल" हैं जो योगी जी पकड़ रहे हैं ?मैंने कहा कि यार अगर मैं योगी जी की जगह होता तो जिस तरह से हर शहर में शराब पिने वालों हेतु "बार"होती है !वैसे ही प्यार करने हेतु युवाओं के लिए "गुटरगूँ"पॉइंट बना देता !मेरी मित्र के बोलने से पहले हमारे पीछे खड़ा एक युवा बोला ,वाह अंकल आइडिया जोरदार है !!सब हंसने लगे !
                       जब हमारे अंदर ही कोई बदलाव नहीं आया है तो चाहे हम कितने ही आधुनिक कपडे पहन लें!कितने ही आधुनिक विचारों वाली किताबें लिख ले,भाषण देदें !हम नहीं बदल सकेंगे !बदलने के लिए हमें स्वयम को अंदर से पहले बदलना होगा जी ! अन्यथा लोग हमें केवल एक अप्रैल को ही नहीं कभी भी "फूल"बनाकर चले जायेंगे !
                       

      

                              "5th पिल्लर करप्शन किल्लर", "लेखक-विश्लेषक एवं स्वतंत्र टिप्प्न्नीकार", पीताम्बर दत्त शर्मा ! 
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Friday, March 24, 2017

"अंक गणित जीवन का ,भारत के परिपेक्ष्य में"!?- पीताम्बर दत्त शर्मा ! "लेखक-विश्लेषक एवं स्वतंत्र टिप्प्न्नीकार"!

हर देश के निवासी की ज़िन्दगी उस देश के "प्रकिर्तिक,सामाजिक,और संविधान के अनुसार गुज़रती है !इन सब के नियम पालन करने के बाद ,इन्सान अपनी पसन्द-नापसन्द,ख़ुशी-दुखी और दूसरों के साथ घुल-मिल सकता है !मूल रूप से इस पृथ्वी पर जन्मे इंसान की क्रियाएं-प्रतिक्रियाएं लगभग एक जैसी होते हुए भी भारी अंतर लिए हुए होती हैं !उसका खान-पान,रहन-सहन और जीवन के अन्य पल उन्हीं"9 रसों"से भरे हुए होते हैं !
                           अंकों का  जीवन में बड़ा महत्त्व है जी!हम कौन सी तारीख को कौन सी घड़ी ,कौन से पल और कौन से नक्षत्र में पैदा हुए हैं ,ये हमारे लिए अतिमहत्वपूर्ण होता है !हमारी सरकार भी हमसे समय-समय पर हमारी जन्म तिथि पूछती रहती है !हमें शिक्षा के हर क्षेत्र में ,हर स्तर को पास करते वक़्त भी ज्यादा से ज्यादा अंक लाने होते हैं !नेताओं को ज्यादा अंकों में वोट लेने होते हैं !इतना ही नहीं मित्रो,सन्तों को भी ज्यादा अपने अनुयायी बनाने और दिखाने पड़ते हैं !कमाई भी हमें ज्यादा अंकों में करनी पड़ती है !
                     इन्हीं अंकों के फेर में क्रिकेट वाले आजकल हर रोज़ मैच खेलते रहते हैं !सट्टे वाले अंकों के साथ धन देते और लेते रहते हैं !भारत में फिर सरकारें और नेता बहुसंख्यकों की  मानते ?क्यों उन्होंने  बहुसंख्यकों को तो,आरक्षण,जातिवाद,धर्म और इलाकों में बाँट दिया है ?क्यों ये लोग केवल अल्पसंख्यकों को ही अपना शुभचिंतक(वोट-बैंक)मानते हैं !कुछ नाजायज़ मांस का व्यापार करने वाले पकडे गए,चन्द आवारागर्द छिछोरे छेड़खानी करते पकडे गए तो इन नेताओं,पत्रकारों को इतना दुःख क्यों हो रहा है ?
                             क्या अंक ही हमारे लिए सब कुछ हो गए हैं ?इंसानियत और संवेदनाएं कुछ भी महत्व नहीं रखतीं हमारे लिए?कुछ वर्षों पहले तलक कितना प्यार होता था हम सब के दिलों में यारो !?कितने साधारण तरीके से हम सब रहते थे?कितनी काम होती थीं हमारी महत्वकांक्षाएं ??कितनी देर तलक आपस में बतियाते थे हमलोग?कितने सिमित साधनों का उपयोग किया करते थे हम सब ?कितने मेहमानों की दिल से खुशामद कितने दिनों तक करते थे हम?और हमें  एहसास ही नहीं होता था कि कोई मेहमान हमारे घर में कितने दिन रह गया??
                     आज !! हम जहां चाहें जा सकते हैं ,जिससे चाहें बात कर सकते हैं !हर प्रकार का साधन हमारे पास है !फिर क्यों हम और हमारे विचार इतने सिंकुड़ गए ?क्यों हम आज उसी ख़ुशी से एक दुसरे के साथ नहीं रह सकते? आप भी मनन करें !मुझे अपने अनमोल कॉमेंट्स से अवश्य बताएं जी !



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Tuesday, March 21, 2017

"हे नेताओ !!अब "राम"को राजनीती से विदा कर ही दो"!! - पीताम्बर दत्त शर्मा (स्वतन्त्र टिप्पणीकार) मो.न. +9414657511

जब भी भारत में कोई हिन्दु इस संसार से विदा होता है तो सभी कहते हैं कि "राम नाम सत्य है , सत्य बोलने से ही गति है "! मुझे ये तो पता नहीं कि जिस दिन वास्तव में राम जी इस संसार से अपने सारे काम निपट गए समझ कर विदा हो रहे थे तो लोगों ने क्या बोला था ! लेकिन ये अवश्य जानता हूँ कि वो सारी समस्याओं का निराकरण करके नहीं गए थे ! इसीलिए हमें अपने झगडे माननीय न्यायालय के समक्ष लेकर जाने पड़ते हैं !वो "तारीख पर तारीख "देते देते जब तलक थक जाते हैं ,तब तलक या तो "मुद्दई"की राम नाम सत्य हो जाती है या सम्बन्धित किसी और पक्ष की !तब सच्चाई भी अपने आप किसी ना किसी के श्रीमुख से बाहर आ ही जाती है !और फैसला हो जाता है !
                        बहुत से मुद्दे अदालत के बाहर ही निपट जाते हैं !वो लोग बुद्धिमान होते हैं जो ऐसा करके अपना समय,स्वास्थ्य और धन बचा लेते हैं !लेकिन कइयों को "लटकने"वाली स्थिति "फायदा"भी पहुंचाती है !तो वो अदालतों में केस चलने देते हैं और "मज़े"करते करते अल्लाह को प्यारे हो जाते हैं !राम जी के मामले में भी ये दूसरी बात सही साबित बैठती है जी ! जो "पुजारी और मौलवी "वहाँ से अपनी"गुज़र-बसर"चलाते थे वे दोनों पक्ष तो अदालत का निर्णय सुनने से पहले ही खुद को पएरे हो गए !लेकिन जिनकी ये "सत्ता की सीढी"बन गयी थी ,वो अपनी फोटुएं खिंचवाकर , हाथ में खिलोने नुमा चक्कु-त्रिशूल पकड़ कर "अपना जलूस"निकालकर कोंग्रेसियों,कॉमरेडों,और पत्रकारों की मदद से विश्व में "हिन्दू-आतंकवादी"बन गए !वो लोग आज भी दुखी हैं कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस केस को "आपसी राय"से सुलटा लेने को क्यों कह दिया ?
                          मुस्लिम मोलवी,वकील और नेता भी चिल्ला-चिल्ला कर नए नए नुक्ते ढूंढ कर लाएंगे !और हर मुद्दे पर एक अच्छी लाईन बोलने के बाद "अगर,मगर और लेकिन से झूठे सवाल खड़े करने की कलाकारी जान्ने वाले लोग उनकी मदद करेंगे !ताकि उनकी ये "सत्ता प्राप्त करने में सहायक सीढी "कहीं टूट ना जाए !
                           मेरा सभी ऐसे "महान नेताओं"से अनुरोध है कि आप कृपया राम को अब माफ़ करें !अपनी सत्ता के लिए कोई और "हूरें"ढूंढ लीजिये !जनता अब इस मामले से बड़ी "ऊब"चुकी है जी !वो आप लोगों के व्यवहार से भी बड़ी दुखी है !आज योगी जी ने ठीक ही कहा है कि संसद के बाहर आपलोग चाहे कितने ही गले मिलो,भाईचारा निभाओ ,लेकिन जनता आपको चोर,भृष्ट और बदमाश मानती है !आप लोग हारने के बाद भी नहीं मानते हो ,दोबारा से फिर चुनाव लड़ने आ जाते हो ! शर्म भी नहीं आती आपको ! कुछ नयी "चॉइस"तो देवें प्लीज़ !!सभी राजनितिक दाल भी अपना दोबारा से "नामकर्णसँस्कार"करवा लेवें और अपनी विचारधारा को भी "दुरुस्त"कर लेवें !भारत के संविधान को भी "आधुनिक"बना देवें जी !
                        ताकि जनता को भी कुछ नया "राजनितिक-स्वाद" चखने का मौका मिले !
                       "मेरी राय में उस पवित ज़मीं पर एक तरफ से मंदिर के स्तम्भ बनते हुए बड़े सारे हाल का निर्माण हो तो उसी हाल के दुसरे सिरे से मस्जिद से सम्बन्धित स्तंभों का निर्माण करते हुए बड़े  का निर्माण हो ! फर्श पर बैठ कर आधे हिस्से में लोग राम जी की आरती करें और दुसरे आधे हिस्से से मुस्लिम भाइयों की अज़ान की अव्व्ज़ सुनाई दे "! 
सभी पाठक मित्र इस लेख को जितना ज्यादा हो सके अपने मित्रों संग शेयर करें !ताकि एकता का माहौल बने !भारतीय इंजिनियर ऐसा कोई कमाल बाखूबी से करके दिखा सकते हैं ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है !मोदी जी और योगी जी की जोड़ी ही ऐसा कमाल कर ! 







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Saturday, March 18, 2017

"मैं नहीं,आपकी EVM खराब है जी"!! - पीताम्बर दत्त शर्मा (स्वतन्त्र-टिप्पणीकार) मो.न.+9414657511.

एक सौ पच्चीस साल पुराणी पार्टी का हाल हमारे सामने है ! प्रादेशिक पार्टियों के सामने हाथ फैलाती नज़र आती है ,और मांगती नज़र आती है कि इतने विधायकों की टिकटें देदो प्लीज़ ! वो भी  पाते हैं बेचारे राष्ट्रिय पार्टी के उपाध्यक्ष महोदय !बेचारों के अन्य नेता,मुख्यमंत्री पद के दावेदार,प्रदेशाध्यक्ष सहित सब अब मुंह छिपाते फिरते हैं !कोई पूछता है कि कौन जिम्मेदार है इस हार का ,तो बड़ी कुर्बानी देने के अंदाज़ में छाती पर हाथ रख कर कहते हैं कि "निस्संदेह हम कार्यकर्त्ता"हैं !हमारे राहुल जी तो अपनी बहन,माता और जीजा जी के साथ अच्छा काम कर रहे हैं !उन्हें तो अब और ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी पार्टी में मिलनी चाहिए !ताकि वो अपने अन्य मित्रों के संग मिलकर और ज्यादा "खुलकर"काम कर सकें !
                         उधर अखिलेश एन्ड पार्टी अभी भी उन्हें "प्रधानमंत्री पद"का दावेदार मानती है !दबी जुबान में वो कोंग्रेस को जिम्मेदार मानते हैं !माननीय चाचा जी और बाऊ जी अब " मार्ग-दर्शक "की भूमिका निभाएंगे !!हमारी बहन मायावती जी तो और भी अच्छा बहाना ढूंढ लायीं ! पहली बात तो किसी की हिम्मत ही नहीं कि कोई उनसे कह पाता कि "आप की वजह से हार "हुई है !उन्होंने खुद ही प्रेस कांफ्रेंस कर के "पन्ना पढ़"दिया कि "मैं नहीं चुनाव आयोग की EVM ख़राब है"! मौका अच्छा देख अखिलेश और राहुल ने भी उनका समर्थन कर दिया !
                              लेकिन जब संसद में कोंग्रेस चीखी कि उन्हीं के शब्दों में "मणिपुर और गोवा में नितिन गडकरी जी लोकतंत्र की हत्या कर आये"!!तो कोई उनके साथ खड़ा ही नहीं हुआ !दिल्ली के "लोकप्रिय मुख्यमंत्री"केजरी वाल जी ,(जो स्वयं कोई काम नहीं करते ,सब सिसोदिया जी पर छोड़ रख्खा है )  ने तो अजीब दलीलें देना शुरू कर दिया !बोले कि हमारे साथ इतने पत्रकार थे,इतनी रैलियों में भीड़ थी ,भला हम कैसे हार सकते हैं ?बहन जी कहती हैं तो EVM की जांच करवालो ना !जैसे उन्होंने पहले कहा था कि पाकिस्तान कहता है तो सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत उनको देदो ना !अजीब आदमी हैं ये आप वाले भी !
                              मोदी जी भी कमाल के आदमी हैं !बड़े से बड़े दुश्मन को भी उनकी तारीफ़ करनी पड़ जाती है ! अभी आज श्री ॐ प्रकाश माथुर जी और केशव प्रसाद मौर्य जी उनसे मिलने पहुंचे !माथुर जी बोले साहिब इन्हें मुख्यमंत्री बना दीजिये !तो वो बोले कि माथुर जी आपको राजस्थान जाना है या इन्हें यूपी का सी एम बनाएं ! बेचारे दोनों हाथ जोड़कर बाहर आ गए !कह आएकी आप जैसा चाहो वैसा करो जी !हमारा पूरा समर्थन रहेगा !
                            तो पाठक मित्रो !! जनता इन घिसे पिटे नेताओं को कई बार खारिज कर चुकी है ! लेकिन ये बेशर्म लोग फिर से जनता के सामने कोई नया विषय या नया रूप लेकर आ जाते है !जनता फिर इन्हीं के चक्करों में फंस जाती है ! चुनाव आयोग को कुछ ऐसा नियम बनाना चाहिए कि जिसकी जमानत जब्त हो जाए ,वो फिर उस स्थान से उस पद हेतु दुबारा चुनाव ही ना लड़ पाए !कोई अपराधी तो कभी भी नहीं चुनाव लड़ पाए !जैसे लालू यादव जी बिना चुनाव लाडे ही नेतागिरी करते फिरते हैं ,वो भी बन्द होनी चाहिए !इन जैसे लोगों ने देश को अपनी "जागीर "ही समझ रख्खा है जी !




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Friday, March 17, 2017

राजनीति राष्ट्रीय पर्व है, चुनावी जीत देश का सबसे बड़ा लक्ष्य !!

52 करोड़ युवा वोटर। 18 से 35 बरस का युवा । 18 बरस यानी जो बारहवीं पास कर चुका होगा। और जिसके सपने खुले आसमान में बेफिक्र उड़ान भर रहे होंगे । 25 बरस का युवा जिसकी आंखों में देश को नये तरीके से गढने के सपने होंगे । 30 बरस का युवा जो एक बेहतरीन देश चाहता होगा। और अपनी शिक्षा से देश को नये तरीके से गढने की सोच रहा होगा। 35 बरस का यानी जो नौकरी के लिये दर दर की ठोकरें खाते हुये हताश होगा। लेकिन सपने मरे नहीं होंगे। तो क्या 2019 का चुनाव सिर्फ आम चुनाव नहीं बल्कि बदलते हिन्दुस्तान की ऐसी तस्वीर होगी जिसके बाद देश नई करवट लेगा। हर हाथ में मोबाइल । हर दिमाग में सोशल मीडिया। सूचनाओं की तेजी। रियेक्ट करने में कहीं ज्यादा तेजी। कोई रोक टोक नहीं। और अपने सपनों के भारत को गढते हुये हालात बदलने की सोच। तो क्या 2019 के चुनाव को पकडने के लिये नेताओ को पारंपरिक राजनीति छोड़नी पड़ेगी। या फिर जिसतरह का जनादेश पहले दिल्ली और उसके बाद यूपी ने दिया है उसने पारंपरिक राजनीति करने वाली पार्टियो ही नही नेताओं को भी आईना दिखा दिया है कि वह बदल जाये । अन्यथा देश बदल रहा है । 

लेकिन युवा भारत के सपने पाले हिन्दुस्तान का ही एक दूसरा सच डराने वाला भी है। क्योंकि जो पढ़ रहे है । जो आगे बढने के सपने पाल रहे है । जो प्रोफशनल्स हैं। उनसे इतर युवा देश का एक सच ये भी है कि कि 52 करोड युवा वोटरों के बीच बड़ी लंबी लाइन युवा मजदूरों की होगी। युवा बेरोजगारों की होगी । युवा अशिक्षितों की होगी। 24 करोड़ युवा मनरेगा से कस्ट्रक्शन मजदूर और शारीरिक श्रम से जुड़ा होगा। 6 करोड रजिस्टर्ड बेरोजगार। तो 9 करोड रोजगार के लिये सडक पर होंगे। 11 करोड़ से ज्यादा युवा 5वीं पास भी नहीं होगा। तो क्या युवा भारत के सपने संजोये भारत को युवा चुनावी वोट से गढ़ता हुआ सिर्फ दिखायी देगा। और जिस बूढ़े हिन्दुस्तान को पीछे छोड युवा भारत आगे बढने के लिये बेताब होगा उसकी जमीन तले लाखों किसानों की खुदकुशी होगी। 30 करोड से ज्यादा बीपीएल होंगे। प्रदूषण से और इलाज बगैर मरते लाखों दूधमुंहें बच्चों के युवा पिता होंगे। ये सारे सवाल इसलिए क्योंकि राजनीतिक सत्ता पाने की होड देश में इस तरह मच चुकी है कि बाकि सारे संस्धान क्या करेंगे या क्या कर रहे है इसपर किसी की नजर है ही नहीं । और सत्ता के इशारे पर ही देश चले तो उसका एक सच ये भी ही कि 1977 में यूपी की 352 सीट पर जनता पार्टी ने 47.76 फिसदी वोट के साथ कब्जा किया था । लेकिन यूपी की तस्वीर और यूपी का युवा तब भी उसी राजनीति के रास्ते निकल पडा छा जहा देश को नये सीरे से गढने का सपना था । और 2017 में यूपी की 312 सीट पर बीजेपी ने 39.71 फिसदी वोट के साथ कब्जा किया है । और फिर युवाओ के सपनो को राजनीति के रंग में रंगने को सियासत तैयार है । तो आईये जरा इतिहास के इस चक्र को भी परख लें क्योंकि 43 बरस पहले का युवा आज सत्ता की डोर थामे हुये है। और बात युवाओं की ही हो रही है।

18 मार्च 1974 को छात्रों ने पटना में विधानसभा घेरकर संकेत दे दिये थे कि इंदिरा गांधी की सत्ता को डिगाने की ताकत युवा ही रखते है और उसके बाद जेपी ने संपूर्ण क्रांति का बिगुल फूंका था। और 43 बरस बाद 18 मार्च 2017 यानी परसो जब बीजेपी समूचे यूपी में जीत का दिन बूथ स्तर तक पर मनायेगी। तो संकेत यही निकलेंगे कि सत्ता में भागेदारी या परिवारत्न के लिये युवा को आंदोलन नही बूथ लेबल की राजनीति सीखनी होगी। तो क्या 43 बरस में छात्र या युवा की परिभाषा भी बदल गई है। क्योंकि याद कीजिये 18 मार्च 1974 । जब 50 हजार छात्रों ने ही पटना में विधानसभा घेर लिया तो राज्यपाल तक विधानसभा पहुंच नहीं पाये । यानी तब छात्र आंदोलन ने सडक से राजनीति गढी । और उसी आंदोलन से निकले चेहरे आज कहा कहा खडे है । नीतिश कुमार , रविशंकर प्रसाद , राजनाथ सिंह , रामविलास पासवान, लालू यादव सरीखे चेहरे 43 बरस पहले जेपी आंदलन से जुडे और ये चंद चेहरे मौजूदा वक्त में सत्ता के प्रतीक बन चुके हैं। ध्यान दीजिये ये चेहरे बिहार यूपी के ही है। यानी यूपी बिहार की राजनीति से निकले इन चेहरों के जरीये क्या युवा राजनीति को मौजूदा वक्त में हवा दी जा सकती है। और प्रधानमंत्री मोदी आज जब 2019 के चुनाव के लिये बारहवीं पास युवाओं को जोड़ने का जिक्र कर रहे है और दो दिन बाद 18 मार्च को यूपी में जीत का जश्न बीजेपी मनायेगी तो नया सवाल ये भी निकलेगा कि यूपी का युवा बूथ लेबल पर चुनावी राजनीति की निगरानी करेगा या फिर आंदोलन की राह पकडेगा । यानी सिर्फ चुनावी राजनीति को ही अगर देश का सच मान लें तो ये सवाल खडा हो सकता है कि युवाओ को राजनीति साथ लेकर आये । लेकिन जब सवाल युवाओ के हालातों से जुडेंगे तो फिर अगले दो बरस की बीजेपी की चुनौती को भी समझना होगा। क्योंकि शिक्षा संस्धानो को पढाई लायक बनाना होगा । यूनिवर्सिटी के स्तर को पटरी पर लाना होगा । 

करीब सवा करोड डिग्रीधारियो के लिये रोजगार पैदा करना होगा। सरकारी स्कूल को पढ़ाई लायक बनाना होगा , जहा तीन करोड बच्चे पढ़ते हैं । तो क्या वाकई युवाओ को साधने का राजनीतिक रास्ता इतना आसान है कि नेता छात्र से संपर्क साधे और जमीनी तौर पर यूपी की बदहाली बरकरार रहे । या फिर राजनीति ने जब सारे हालात चुनाव के जरीये सत्ता पाने और सत्ता बोगने पर टिका दिये है तो कही नये हालात एक नये छात्र आदोलन को तो देश में खडा नहीं कर देगें । क्योंकि याद किजिये जेएनयू , डीयू , हैदराबाद , पुणे फिल्म इस्टीयूट , जाधवपुर यूनिवर्सिटी , अलीगढ यूनिवर्सिटी में छात्र संघर्ष बीते दौ हरस के दौर में ही हुआ । और कमोवेश हर कैंपस म वही मुद्दे उठे जो राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करते । यानी सवाल दलित का हो या सवाल साप्रदायिकाता बनाम सेक्यूलरिज्म का । सवाल राष्ट्रवाद बनाम देशद्रोह का हो या फिर शिक्षा का ही हो । संघर्ष करते ये छात्र राजनीतिक दलों की विचारधारा तले बंटते हुये नजर आये । लेकिन छात्र इस सवाल को कभी राजनीतिक तौर उठा नहीं पाये कि सत्ता के लिये नेता राजनीतिक विचारधारा को छोड़ क्यों देते हैं। यानी उत्तराखंड हो या गोवा या मणिपुर । या फिर यूपी-पंजाब में भी ऐसे नेताओ की पेरहिस्त खासी लंबी है जो कल तक जिस राजनीतिक धारा के खिलाफ थे । चुनाव के वक्त या चुनाव के बाद सत्ता के लिये उसी दल के साथ आ खडे हुये । तो क्या छात्र इस सच को समझ नहीं पा रहे है । क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी जब अपने नेताओं को छात्रों से जोडने के लिये कह रहे हैं तो दो सवाल है । पहला छात्र भी राजनीति लाभ के लिये है । और दूसरा-कालेज में कदम रखते ही अब छात्रो को अपनी राजनीतिक पंसद साफ करनी होगी । यानी देश में हालात ऐसे है कि राजनीति ही सबकुछ है । क्योकि हर सरोकार को राजनीतिक लाभ में बदलने का जो पाठ संसदीय दल की बैठक में प्रादनमंत्री ने 16 मार्च को पढाया उसके संकेत साफ है अब राजनीति राष्ट्रीय पर्व है और चुनावी जीत देश का सबसे बडा लक्ष्य ।

 Punya Prasun Bajpai जी से साभार लिया !!

"5th पिल्लर करप्शन किल्लर", "लेखक-विश्लेषक एवं स्वतंत्र टिप्प्न्नीकार", पीताम्बर दत्त शर्मा ! वो ब्लॉग जिसे आप रोजाना पढना,शेयर करना और कोमेंट करना चाहेंगे ! link -www.pitamberduttsharma.blogspot.com मोबाईल न. + 9414657511. इंटरनेट कोड में ये है लिंक :- https://t.co/iCtIR8iZMX. "5th pillar corruption killer" नामक ब्लॉग अगर आप रोज़ पढ़ेंगे,उसपर कॉमेंट करेंगे और अपने मित्रों को शेयर करेंगे !तो आनंद आएगा !

Thursday, March 16, 2017

जनादेश गढ़ रहा है सियासी लोकतंत्र को.......??

10 करोड़ से ज्यादा बीजेपी सदस्य। 55 लाख 20 हजार स्वयंसेवक, देश भर में 56 हजार 859 शाखायें। 28 हजार 500 विद्यामंदिर। 2 लाख 20 हजार आचार्य। 48 लाख 59 हजार छात्र । 83 लाख 18 हजार 348 मजदूर बीएमएस के सदस्य। 589 प्रकाशन सदस्य । 4 हजार पूर्ण कालिक सदस्य । एक लाख पूर्वसैनिक परिषद । 6 लाख 85 हजार वीएचपी-बंजरंग दल के सदस्य । यानी देश में सामाजिक-सांगठनिक तौर पर आरएसएस के तमामा संगठन और बीजेपी का राजनीतिक विस्तार किस रुप में हो चुका है, उसका ये सिर्फ एक नजारा भर है। क्योंकि जब देश में राजनीतिक सत्ता के लिये सामाजिक सांगठनिक हुनर मायने रखता हो, तब कोई दूसरा राजनीतिक दल कैसे इस संघ -बीजेपी के इस विस्तार के आगे टिकेगा, ये अपने आप में सवाल है। क्योंकि राजनीतिक तौर पर इतने बडे विस्तार का ही असर है कि देश के 13 राज्यों में बीजेपी की अपने बूते सरकार है। 4 राज्यों में गठबंधन की सरकार है। और मौजूदा वक्त में सिर्फ बीजेपी के 1489 विधायक है तो संसद में 283 सांसद हैं। और ये सवाल हर जहन में घुमड़ सकता है कि संघ-बीजेपी का ये विस्तार देश के 17 राज्यो में जब अपनी पैठ जमा चुका है तो फिर आने वाले वक्त में कर्नाटक-तमिलनाडु और केरल यानी दक्षिण का दरवाजा कितने दिनों तक बीजेपी के लिये बंद रह सकता है। 
तो सवाल चार हैं। पहला, क्षेत्रीय दलों की मौजूदगी अर्थहीन हो चली है। दूसरा, हाशिये पर पडे बहुसंख्यक तबके में जातिगत राजनीति खत्म हो चली है। तीसरा,बहुसंख्यक गरीब तबका मुख्यधारा से जुड़ने की आकांक्षा पाल चुका है। चौथा, राज्यों को केन्द्र की सरकार के साथ खड़ा होना ही होगा। यानी जो राजनीति मंडल से निकली, जिस राजनीति को आंबेडकर ने जन्म दिया, जो आर्थिक सुधार 1991 में निकले। सभी की उम्र पूरी हो चुकी है और नये सीरे से देश को मथने के लिये मोदी-भागवत की जोड़ी  तैयार है। क्योंकि इनके सामने विजन सिर्फ अगले चुनाव यानी 2019 का नहीं बल्कि 2025 का है। जब आरएसएस के सौ बरस पूरे होंगे। और सौ बरस की उम्र होते होते संघ को लगने लगा है कि बीजेपी अब देश को केसरिया रंग में रंग  सकती है। क्योंकि पहली बार उस यूपी ने जनादेश से देश के उस सच को ही हाशिये पर ठकेल दिया जहां जाति समाज का सच देश की हकीकत मानी गई। और इसीलिये 18-19 मार्च को कोयबंटूर में संघ की प्रतिनिधि सभा में सिर्फ 5 राज्यों के चुनाव परिणाम के असर से ज्यादा 2025 को लेकर भी चर् होने वाली है। और इस खांचे में मुस्लिमों कैसे खुद ब खुद आयेंगे, इसकी रणनीति पर चर्चा होगी।

तो क्या वाकई संघ-बीजेपी के इस विस्तार के आगे हर तरह की राजनीति नतमस्तक है। या फिर 2017 ने कोई सीख विपक्ष की राजनीति को भी दे दी है। क्योंकि 2014 में मोदी लहर में बीजेपी को 31 फीसदी वोट मिले। और यूपी की सियासत को ही उलटने वाले जनादेश में बीजेपी को 39.7 फिसदी वोट मिले। यानी 2014 में 68 फिसदी वोट विपक्ष में बंटा हुआ था। और यूपी में अगर मायावती भी अखिलेश राहुल के साथ होती तो कहानी क्या कुछ और ही हो सकती थी। क्योंकि मायावती को मिले 22.2 फिसदी वोट सिवाय बीजेपी को जिताने के अलावे कोई काम कर नहीं पाये। लेकिन विपक्ष के वोट मिला दे तो करीब 50 फिसदी वोट हो जाते। तो क्या वाकई अब भी ये तर्क दिया जा सकता है कि जिस तरह कभी गैर इंदिरावाद का नारा लगाते हुये विपक्ष एकजुट हुआ और इंडिया इज
इंदिरा या इंडिया इज इंदिरा का शिगुफा धूल में मिला दिया। उसी तरह 2019 में मोदी इज इंडिया का लगता नारा भी धूल में मिल सकता है। या फिर जिस राजनीति को मोदी सियासी तौर पर गढ रहे है उसमें विपक्ष के सामने सिवाय राजनीतिक तौर तरीके बदलने के अलावे कोई दूसरा रास्ता बचता नहीं है । क्योंकि कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टीकरण का रास्ता पकड़ा। मंडलवाद-आंबेडरकरवाद ने जाति को बांटकर मुस्लिम को साथ जोडा । लेकिन दलित-पिछडे-मुस्लिमों की सामाजिक-आर्थिक हालात और बिगड़ी। तो क्या नये हालात में ये मान लिया जाये कि जैसे ही चुनावी राजनीति के केन्द्र में मोदी होंगे, वैसे ही वोट का ध्रुवीकरण मोदी के पक्ष में होगा। क्योंकि मोदी ने देश की उस नब्ज को पकड़ा, जिस नब्ज को राजनीतिक दलो ने सत्ता पाने के लिये वोट बैंक बनाया। तो ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि विपक्ष की वापसी तभी होगी जब मोदी से पैदा हुई उम्मीद टूट जाये। ध्यान दें तो कांग्रेस की राजनीति सियासी इंतजार पर ही टिकी है। और मायावती से लेकर अखिलेश तक उन चार सवालो का राजनीतिक रास्ता कोई नहीं पाये जिसे मोदी ने चुनावी भाषणों में हर जहन में पैदा दिया। पहला परिवारवाद, दूसरा जातिवाद, तीसरा भ्रष्टाचारवाद, चौथा तुष्टीकरण। विपक्ष कह सकता है बीजेपी भी इससे कहा मुक्त है लेकिन पहली बार समझना ये भी होगा कि मोदी ने अपने कद को बीजेपी से बड़ा किया है और सियासी राजनीति के केन्द्र में बीजेपी या संघ की राजनीतिक फिलास्फी नहीं बल्कि मोदी की राजनीतिक समझ है।

लेकिन दिल्ली और यूपी की सत्ता पर काबिज होने के बाद नया सवाल यही है कि क्या जनादेश की उम्मीदपर बीजेपी खरी उतरेगी या उतरने की चुनौती तले मोदी की राजनीति बीजेपी में भी घमासान को जन्म दे देगी । क्योंकि यूपी का सच यही है कि उसपर बीमारु राज्य का तमगा । और कमोवेश हर क्षेत्र में यूपी सबसे
पिछडा हुआ है । तो क्या मौजूदा वक्त में 22 करोड़ लोगों का राज्य सबसे बडी चुनौती के साथ मोदी के सामने है। और चुनौती पर पार मोदी पा सकते है इसीलिये उम्मीद कही बडी है या फिर इससे पहले के हालातों को मोदी जिस तरह सतह पर ले आये उसमें हर पुरानी सत्ता सिवाय स्तात पा कर रईसी करती दिखी इसीलिये जनता ने सत्ता पाने के पूरे खेल को ही बदल दिया। क्योंकि राज्य की विकास दर को ही देख लें तो अखिलेश के दौर में 4.9 फिसदी। तो मायावती के दौर में 5.4 फिसदी । और मुलायम के दौर में 3.6 पिसदी । यानी जिस दौर में तमाम बीमारु राज्यो की विकास दर 8 से 11 फिसदी के बीच रही तब यूपी सबसे पिछडा रहा । और खेती या उघोग के क्षेत्र में भी अगर बीते 15 बरस के दौर को परखे तो खेती की विकास दर मुलायम के वक्त 0.8 फिसदी, तो मायावती के वक्त 2.8 फिसदी और अखिलेश के वक्त 1.8 फिसदी । और उघोग के क्षेत्र में मुलायम के वक्त 9.7 फिसदी , मायावती के वक्त 3.1 फिसदी , अखिलेश के वक्त 1.3 फिसदी है। यानी चुनौती इतनी भर नहीं है कि यूपी के हालात को पटरी पर कैसे लाया जाये । इसके उलट यूपी को उम्मीद है कि करीब 8 करोड गरीबों की जिन्दगी कैसे सुधरेगी । जाहिर है हर नजर दिल्ली की तरफ टकटकी लगाये हुये है । क्योंकि एक तरफ देश में प्रति व्यक्ति आय 93231 रुपए है,जबकि यूपी में यह आंकड़ा महज 44197 रुपए है । देश की 16 फीसदी से ज्यादा आबादी होने के बावजूद यूपी का जीडीपी में योगदान महज 8 फीसदी है । दरअसल, सच यह है कि बीते 20 साल में यूपी का आर्थिक विकास किसी सरकार की प्राथमिकता में रहा ही नहीं। लेकिन मुद्दा सिर्फ आर्थिक विकास का नहीं है। ह्यूमन डवलपमेंट के हर पैमाने पर यूपी फिसड्ड़ी है। यानी गरीबों-दलितों-वंचितों की बात करने वाली हर सरकार ने अपनी सोशल इँजीनियरिंग में उन्हीं के आसरे सत्ता हासिल की-लेकिन गरीबों को मिला कुछ नहीं। आलम ये कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट कहती है कि यूपी के 44 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं । स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति सार्वजनिक खर्च गोवा और मणिपुर जैसे राज्यों से भी कम है। शिशु मृत्यु दर देश के औसत से कहीं ज्यादा है । यानी किसी भी पैमाने पर यूपी की छवि विकासवादी सूबे की नहीं रही और इन हालातों में जब यूपी के जनादेश ने सियासत करने के तौर तरीके ही बदलने के संकेत दे दिये है तो भी जिन्हे जनता ने अपनी नुमाइन्दगी के लिये चुना है उनके चुनावी हफलनामे का सच यही है कि 402 में से 143 विधायकों का आपराधिक रिकॉर्ड है और इनमें 107 विधायकों पर तो गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं । और यूपी अब इंतजार कर रहा है कि उसका मुखिया कौन होगा यानी सीएम होगा कौन । और सीएम के लिये फार्मूले तीन है । पहला कोई कद्दावर जो यूपी का सीएम हो जाये । दूसरा यूपी का दायित्व कई लोगो में बांटा जाये। तीसरा, यूपी पूरी तरह पीएमओ के रिमोट से चले। इन तीन फार्मूलो के अपने अंतर्विरोध इतने है कि अभी नाम के एलान का इंतजार करना पडेगा ।

क्योंकि कोई कद्दावर नेता दायित्वो को बांटना नहीं चाहेगा । दायित्वों को बांटने का मतलब दो डिप्टी सीएम और रिमोट का मतलब पीएमओ में नीति आयोग की अगुवाई में तीन से पांच सचिव लगातार काम करें । यानी संघ और बीजेपी का सामाजिक राजनीतिक विस्तार चाहे देश को केसरिया रंग में रंगता दिखे लेकिन सच यही है कि लोकतंत्र का राग चुनावी जीत तले अकसर दब जाता है। और यूपी सरीखा जनादेश लोकतंत्र को नये तरीके से गढने के हालात भी पैदा कर देता है।




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Thursday, March 9, 2017

लखनऊ की तथाकथित आतंकी मुठभेड़ सच है या तमाम फर्जी घटनाओं की तरह एक ड्रामा...???सच्च क्या है ?

सात मार्च को दिन का आखरी पहर मीडिया के जांबाजों का चिल्ला-चिल्ला कर बताना कि संदिग्ध आतंकवादियों के साथ लखनऊ के ठाकुरगंज (हाजी कालोनी) में पुलिस का मुठभेड़ जारी है, आतंकी को चारों तरफ से घेर लिया गया है।
हाजी कालोनी लखनऊ शहर का सबसे व्यस्ततम इलाका है। और यहाँ पिछले कई घण्टों से isis के आतंकियों को पुलिस ने घेर रखा है, दोनों तरफ से गोली बारी चालू है। पूरे शहर में दहशत का माहौल है हर कोई खौफ में है (तब तक ऐसा कुछ नहीं था, जब कि मीडिया खौफ जदा करने की पूरी कोशिश में लगा हुआ था। जब कि मीडिया को चाहिये था कि हकीक़त से रुबरू करा कर अवाम के दिलो से खौफ निकाला जाये)।
सूरज की रोशनी मद्धम होकर लोगों को दिन के खत्म होने का एहसास करा रही थी। तो दूसरी जानिब हमारा मीडिया हकीकत की तह में जाने के बजाय अफवाहों के जरिये लोगों को खौफ के साथ रात गुजारने के लिए बेबस कर रहा था।
लखनऊ शहर के लोगों के साथ पूरा मुल्क नींद के आगोश में जाने के बजाय हकीकत से वाकफियत के लिए टीवी स्क्रीन पर निगाहें जमाये बैठा था।
टीवी रिपोर्टर बड़े जोशो खरोश के साथ बगैर किसी डर के तथाकथित isis आतंकवादी के छिपे हुए घर के गेट पर से ही खबरें देकर लोगों की और जानने की तिश्नगी को भड़का रहा था।
मीडिया बता रहा था कि देखो आतंकी से निपटने के लिए अब आंसू गैस छोड़े जा रहे हैं, अब कटर मंगा कर छत को काटने की तैयारी चल रही है, अब आतंकी को कैमरे से देखा गया, अब गोली मारकर जख्मी किया गया, अब एम्बुलेंस बुलाया गया। ... और इसी तरह की बयानबाजी करते करते वह सच भी बोलने लगे जो दिन के उजाले में ही बोल देना चाहिए था।
आठ मार्च की सुबह हर अखबार के पहले पेज से लेकर दूसरे पेज तक कल के मुठभेड़ की कहानियों से भरा पड़ा है। हर किसी के जुबान पर मीडिया द्वारा सुनाई गई कहानी है।
रिहाई मंच की टीम एडवोकेट शुएब की कयादत में घटना स्थल पर जाकर 
असलियत जानने की कोशिश करती है।
घटना स्थल पुलिस और मीडिया के लोगों से भरा है। मारा गया सैफुल्लाह जिस मकान में रहता था, वह अंदर से बंद है पता करने पर मालूम हुआ कि अंदर पुलिस छानबीन कर रही है। जब कि झाँक कर देखने पर मिला कि कुछ लोग आराम से कुर्सी पर बैठे केले खा रहे हैं।
एक पुलिसकर्मी से जब रिहाई मंच के अध्यक्ष एडवोकेट शुएब ने कहा कि हम रिहाई मंच से हैं, हकीकत जानने के लिए आये हैं। क्या हम अंदर जाकर देख सकते हैं कि नौ घण्टे तक गोलियां जो चली हैं, उनके कोई निशान वगैरा अंदर मौजूद हैं? क्योंकि बाहर तो कोई ऐसे निशान दरोदीवार या दरवाजे पर नहीं दिख रहे हैं, जिस से मालूम पडे कि यह वही जगह है जंहां गूजिस्ता रात इतनी भारी मात्रा में गोली बारी हुई है।
मौके पर कुर्सी लगाये बैठे (कल की थकान की वजह से) पुलिस वाले ने कहा कि इस के लिये आई जी साहब से बात करनी पड़ेगी आप को।
रिहाई मंच के अध्यक्ष सच्चाई की किसी और कडी की तलाश करते कि इस से पहले मीडिया के कई चैनल के लोगों ने घेर लिया।
मीडिया :- आप इसे किस तरह से देखते हैं?
एडवोकेट शुएब :-पिछले कई घटनाओं के देखने के बाद आंख बंद कर यकीन नहीं कर सकता, इसी तरह से अक्षरधाम मंदिर की घटना का भी लाईव टेलीकास्ट करके इनकाउन्टर किया गया था जो फर्जी था।
मीडिया :- लेकिन यंहा से भारी मात्रा में हथियार और गोली बारूद बरामद हुआ है?
एडवोकेट शुएब :-कचहरी सीरियल ब्लास्ट के मामले में पकड़े गए लोगों से भी भारी मात्रा में गोली बारूद की बरामदगी दिखाई गई थी, जो सब निर्दोष थे और अब वह कोर्ट से बाइज्जत बरी हो चुके हैं।
मीडिया :- तो आप इसे फर्जी मान रहे हैं?
एडवोकेट शुएब :- अभी हम असलियत जानने की कोशिश कर रहे हैं जब तक हम तहकीकात नहीं कर लेते तब तक हम इसे असली भी नहीं मान सकते।
रिहाई मंच की टीम हकीकत जानने के लिए आसपास और चश्मदीदों से मुलाकात करती है जिस में उसके सामने कई ऐसी बातें आती हैं, जिससे इस घटना के सत्यता पर सवालिया निशान लगाती हैं जैसे,
1) स्थानीय लोगों के मुताबिक शाम को आँसू गोले दागने के अलावा कोई फायरिंग नही हुई।
2) घर की छत पर दो दो जालियों के बावजूद छत को कटर से क्यों काटा गया? जाली क्यों नहीं उखाड कर घुसा गया?
3) इतनी देर तक दोनों तरफ से गोली बारी हुई, लेकिन उसके निशान कंहीं नहीं दिखे।
4) क्या सैफुल्लाह को पहले ही से मालूम था कि पुलिस हमें पकड़ने आ रही है जो इतनी मजबूती से अंदर अपने को बंद कर लिया?
और अगर मालूम था तो भागा क्योँ नही?
5) पुलिस को कैसे मालूम पड़ा कि जिसको हम पकड़ने आये हैं वह अंदर ही मौजूद है?
6) मारे गये सैफुल्लाह को कैसे पता चला कि पुलिस ने हमें चारों तरफ से घेर लिया है? जब कि स्थानीय लोगों के मुताबिक पुलिस ने कोई एनाउंसमेंट नही किया?
इस तरह के तमाम तरह के तथ्य रिहाई मंच के तफतीश के दौरान सामने आये हैं, जो इस घटना को शक के घेरे में खड़ा करती है। लेकिन अभी रिहाई मंच अपने स्तर पर जांच जारी रखे हुए है, उसके घर पर भी राबता करने की कोशिश कर रही है।
देखते हैं सच है या तमाम फर्जी घटनाओं की तरह एक ड्रामा।द्वारा -: शबरोज़ मोहम्मदी एडवोकेट !



                                       शबरोज़ मोहम्मदी (साभार - हस्तक्षेप)
"5th पिल्लर करप्शन किल्लर", "लेखक-विश्लेषक एवं स्वतंत्र टिप्प्न्नीकार", पीताम्बर दत्त शर्मा ! वो ब्लॉग जिसे आप रोजाना पढना,शेयर करना और कोमेंट करना चाहेंगे ! link -www.pitamberduttsharma.blogspot.com मोबाईल न. + 9414657511. इंटरनेट कोड में ये है लिंक :- https://t.co/iCtIR8iZMX. "5th pillar corruption killer" नामक ब्लॉग अगर आप रोज़ पढ़ेंगे,उसपर कॉमेंट करेंगे और अपने मित्रों को शेयर करेंगे !तो आनंद आएगा !

"क्या सखी "रौ-ली"?ना सखी "होली" ! - पीताम्बर दत्त शर्मा (स्वतंत्र-टिप्पणीकार) मो.न.+९४१४६५७५११

आजकल सभी टीवी चेनलों पर चुनावी चर्चा के साथ-साथ कवितायेँ और ठिठोलियाँ भी खूब देखने-सुनने को मिल रही हैं !कवियों के मौज बनी हुई है !भाई कुमार विश्वास जी तो इंडियन आइडोल में ही पहुच गए !कविता की सभी "विधाएं" सुनकर आनन्द की अनुभूति हो रही है !लोकतंत्र के पांचवे खम्भे "यानी कि इंटरनेट पर तो हमेशां ही कवियों - कवित्रियों की रचनाएँ पढता ही रहता हूँ !चाहे असली लेखकों की हों या नकली कवियों की , कोई फर्क इसलिए नहीं पड़ता क्योंकि मुझे कौन सी कोई परीक्षा देनी है ! आइये होली की मनभावन बेला पर मैं भी आपको अपनी पसंद की कुछ चुटकियाँ पढवाता हूँ !मजा आयेगा !!जनाब ज़रा पढ़िए तो...................!!
                         अंग-अंग फड़कन लगे, देखा ‘रंग-तरंग’
स्वस्थ-मस्त दर्शक हुए, तन-मन उठी उमंग
तन-मन उठी उमंग, अधूरी रही पिपासा
बंद सीरियल किया, नहीं थी ऐसी आशा
हास्य-व्यंग्य के रसिक समर्थक कहाँ खो गए
मुँह पर लागी सील, बंद कहकहे हो गए

जिन मनहूसों को नहीं आती हँसी पसंद
हुए उन्हीं की कृपा से, हास्य-सीरियल बंद
हास्य-सीरियल बंद, लोकप्रिय थे यह ऐसे
श्री रामायण और महाभारत थे जैसे
भूल जाउ, लड्डू पेड़ा चमचम रसगुल्ले
अब टी.वी.पर आएँ काका के हँसगुल्ले !!
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सभी रंग बदरंग हैं, कैसे खेलूँ रंग? / ऋषभ देव शर्मा

सभी रंग बदरंग हैं कैसे खेलूँ रंग
बौराया तेरा शहर घुली कुएँ में भंग

पूजाघर के पात्र में राजनीति के रंग
या मज़हब के युद्ध हैं या कुर्सी की जंग

कंप्यूटर पर बैठकर उड़े जा रहे लोग
मेरे काँधे फावड़ा मुझे न लेते संग

होली है पर चौक में नहीं तमाशा एक
कब से गूँगी ढोलकें बजी न कब से चंग

इनके महलों में रचा झोंपड़ियों का खून
बुर्जी वाले चोर हें , चीखा एक मलंग

ऐसी होली खेलियो खींच मुखौटे , यार!
असली चेहरा न्याय का देख सभी हों दंग

                                सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा 
हम भेड़-बकरी इसके यह ग्वारिया हमारा 

सत्ता की खुमारी में, आज़ादी सो रही है
हड़ताल क्यों है इसकी पड़ताल हो रही है 
लेकर के कर्ज़ खाओ यह फर्ज़ है तुम्हारा 
सारे जहाँ से अच्छा...

चोरों व घूसखोरों पर नोट बरसते हैं
ईमान के मुसाफिर राशन को तरशते हैं
वोटर से वोट लेकर वे कर गए किनारा 
सारे जहाँ से अच्छा...

जब अंतरात्मा का मिलता है हुक्म काका
तब राष्ट्रीय पूँजी पर वे डालते हैं डाका
इनकम बहुत ही कम है होता नहीं गुज़ारा 
सारे जहाँ से अच्छा...

हिन्दी के भक्त हैं हम, जनता को यह जताते 
लेकिन सुपुत्र अपना कांवेंट में पढ़ाते 
बन जाएगा कलक्टर देगा हमें सहारा 
सारे जहाँ से अच्छा...

फ़िल्मों पे फिदा लड़के, फैशन पे फिदा लड़की
मज़बूर मम्मी-पापा, पॉकिट में भारी कड़की
बॉबी को देखा जबसे बाबू हुए अवारा 
सारे जहाँ से अच्छा...

जेवर उड़ा के बेटा, मुम्बई को भागता है 
ज़ीरो है किंतु खुद को हीरो से नापता है
स्टूडियो में घुसने पर गोरखा ने मारा 
सारे जहाँ से अच्छा...!!
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                                      कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ| !!  
प्रकृति बदलती क्षण-क्षण देखो,
बदल रहे अणु, कण-कण देखो|
तुम निष्क्रिय से पड़े हुए हो |
भाग्य वाद पर अड़े हुए हो|

छोड़ो मित्र ! पुरानी डफली,
जीवन में परिवर्तन लाओ |
परंपरा से ऊंचे उठ कर,
कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ |

जब तक घर मे धन संपति हो,
बने रहो प्रिय आज्ञाकारी |
पढो, लिखो, शादी करवा लो ,
फिर मानो यह बात हमारी |

माता पिता से काट कनेक्शन,
अपना दड़बा अलग बसाओ |
कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ |

करो प्रार्थना, हे प्रभु हमको,
पैसे की है सख़्त ज़रूरत |
अर्थ समस्या हल हो जाए, 
शीघ्र निकालो ऐसी सूरत |

हिन्दी के हिमायती बन कर,
संस्थाओं से नेह जोड़िये |
किंतु आपसी बातचीत में,
अंग्रेजी की टांग तोड़िये |

इसे प्रयोगवाद कहते हैं,
समझो गहराई में जाओ |
कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ |

कवि बनने की इच्छा हो तो,
यह भी कला बहुत मामूली |
नुस्खा बतलाता हूँ, लिख लो,
कविता क्या है, गाजर मूली |

कोश खोल कर रख लो आगे, 
क्लिष्ट शब्द उसमें से चुन लो|
उन शब्दों का जाल बिछा कर,
चाहो जैसी कविता बुन लो |

श्रोता जिसका अर्थ समझ लें,
वह तो तुकबंदी है भाई |
जिसे स्वयं कवि समझ न पाए, 
वह कविता है सबसे हाई |

इसी युक्ती से बनो महाकवि,
उसे "नई कविता" बतलाओ |
कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ |

चलते चलते मेन रोड पर,
फिल्मी गाने गा सकते हो |
चौराहे पर खड़े खड़े तुम, 
चाट पकोड़ी खा सकते हो |

बड़े चलो उन्नति के पथ पर,
रोक सके किस का बल बूता?
यों प्रसिद्ध हो जाओ जैसे, 
भारत में बाटा का जूता |

नई सभ्यता, नई संस्कृति,
के नित चमत्कार दिखलाओ |
कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ | 

पिकनिक का जब मूड बने तो,
ताजमहल पर जा सकते हो |
शरद-पूर्णिमा दिखलाने को,
'उन्हें' साथ ले जा सकते हो |

वे देखें जिस समय चंद्रमा,
तब तुम निरखो सुघर चाँदनी |
फिर दोनों मिल कर के गाओ, 
मधुर स्वरों में मधुर रागिनी |
( तू मेरा चाँद मैं तेरी चाँदनी ..)

आलू छोला, कोका-कोला, 
'उनका' भोग लगा कर पाओ |
कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ|





"5th पिल्लर करप्शन किल्लर", "लेखक-विश्लेषक एवं स्वतंत्र टिप्प्न्नीकार", पीताम्बर दत्त शर्मा ! वो ब्लॉग जिसे आप रोजाना पढना,शेयर करना और कोमेंट करना चाहेंगे ! link -www.pitamberduttsharma.blogspot.com मोबाईल न. + 9414657511. इंटरनेट कोड में ये है लिंक :- https://t.co/iCtIR8iZMX. "5th pillar corruption killer" नामक ब्लॉग अगर आप रोज़ पढ़ेंगे,उसपर कॉमेंट करेंगे और अपने मित्रों को शेयर करेंगे !तो आनंद आएगा !

"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...