Friday, December 6, 2013

" मज़ा " आने वाली " क्रिया " से पीड़ित कैसे हो जाते हैं ये आज के " हुस्न " वाले ?????

मुझे कोई तो बताये !! कि 21वीं सदी में विचरण करने वाले,आधुनिकता में रचे-बसे ये "भारतीय - अंग्रेज़ों " को क्या हो गया है ? मोबाईल पे पोर्न , इण्टरनेट पे पोर्न , भारतीय पत्र,पत्रिकाओं में अश्लील साहित्य ,अश्लील विज्ञापन और टेलिविज़न पर सेक्स से भरपूर सामग्रियाँ उपलब्ध सरकार द्वारा करने के बावज़ूद सेक्स क्रिया में आनन्दित होने की  बजाय भारतीय नारियाँ अपने आपको पीड़ित क्यों मानती रहती हैं ?? क्यों हमारी सरकार रज़ामंदी से हुए सेक्स कि आज़ादी नहीं दे रही ? जबकि सरकार और उसके वक्ता-प्रवक्ता और मीडियाई दुमछल्ले तो इस तरह के क़ानून बनाकर पास करने की वकालत करते दिखायी देते ही रहते हैं !!
           भारतीय नारियों की  मानसिकता का भी पता नहीं चलता मिनट में " झाँसी की रानी "और मिनट में अबला पीड़िता ??? और जो शादी के बाद रोज़ सचमे "पीड़ित " होता रहता है बेचारा पति उसकी कौन सुनेगा ??? हमारे माननीय केंद्रीय मंत्री ज़नाब फारुक अब्दुल्लाह साहिब ने छोटी सी सच्चाई क्या बयान करदी , लगे बयान आने " अनर्थ " होगया-अनर्थ हो गया  ??
         थोड़े दिन पहले की  ही बात है कि पाकिस्तान बॉर्डर के पास राजस्थान में एक आदमी को पांच ओरतों ने नोच-नोच कर खा लिया और उसकी इज़ज़त लूटी वो अलग तब तो देश में कोई तुफान नहीं आया क्यों ??? सोशियल मिडिया के इलावा किसी चेनल ने खबर ना तो दिखायी और नाही किसी अखबार में प्रकाशित हुई क्यों ??
          सच्चाई ये है कि हम सब एक नंबर के झूठे फरेबी और मक्कार किसम के प्राणी हैं !! ना जाने कितने आडंबरों में हमने अपने आपको छिपा कर रख्खा है !! हमने विदेशी भाषा बोलना सीख लिया , विदेशी कपडे पहनने ,विदेशी सामान प्रयोग करना और विदेशी आचरण करना हमें आ गया लेकिन हम अंदर से आज भी " अँगरेज़ " नहीं बन पाये .....आपको क्या लगता है ??
          क्या लड़का अगर जन्मे तो उसे पैदा होते ही नहीं मार देना चाहिए गला घोट कर या ज़हर देकर क्योंकि सारी बीमारी की जड़ तो वोही है, नहीं ????
           मेरा तो ये मानना है कि बिना रज़ामंदी के कोई मर्द किसी बच्ची तलक को " छू " भी नहीं सकता !!" 90%तक केसों में ये ही देखा गया है कि " उस " ख़ास वक्त पर तो वो नतीजों की परवाह किये बिना सेक्स क्रियाओं कि इजाज़त दे देती हैं , लेकिन बाद में जब भेद खुल जाता है या खुलने का डर  उन्हें सताता है तो वो "  पीड़िता " कहती और कहलाने लग जाती हैं तब उन्हें उस आदमी के लिए सिर्फ " फांसी " ही चाहिए होती है क्यों ?? मीडिया की तो दुकानदारी चल पड़ती है और महिला आयोग और समाज सेविकाओं  को कुछ करने को मिल जाता है वरना आगे पीछे कौन उनकी " बाईट " लेने कमबख्त आता है !! सारे बोलो - जय माता दी !!
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Posted by PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.)


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