Thursday, November 28, 2013

" तेजपाल की तरुणाई देखिये , सेकुलरों का अपने आदमी को बचाना देखिये और साम्प्रदायिक शक्तियों का माफीनामा देखिये" ...!!!!

" कोंग्रेस्सी मंत्रियों,वकील और नेताओं के बाद अब एक सेकुलर पत्रकार कि पोल" खुल चुकी है ! वैसे इस तरह के आरोप महात्मा गांधी , जवाहर लाल नेहरू और श्री मति इंदिरा गांधी जी के ऊपर भी लग चुके हैं लेकिन आजकल के नेता तो नेता लेकिन उनके टुकड़ों पर पलने वाले बिकाऊ पत्रकार भी ऐसे केसों में पकडे जेन लगे हैं !! संगत के असर के कारण ऐसे मामले सामने आते हैं !!
         तेजपाल ने बड़ी कोशिश की कि इस मामले को भावुक बातों से दबाया जा सके , लेकिन जब उन्हें इस मामले को दबाने में कामयाबी नहीं मिली तो उन्होंने अपना सारा माल समेटा और तहलका नाम कि पत्रिका से स्तीफा देकर तहलका मचाकर चलते बने !! आम आदमी अगर कोई ऐसा अपराध करता तो क्या उसे इस तरह कि रियायतें दी जातीं ??? उसकी तो प्राथमिकी दर्ज़ होने से पहले ही ग्रिफ्तारी हो जाती और पिटाई भी हो चुकी होती !कमाल तो देखिये कि पीड़ित महिला पत्रकार के साथ कोई पत्रकार और नाही कोई पत्रकारों की  संस्था खड़ी दिखायी दे रही है !! सब तरुण तेजपाल को भाजपा से बचने में लगे हुए हैं !! पहले तो पत्रकारों ने दिल्ली के एक छोटे नेता " जॉली " को उकसाकर शोमा के घर के आगे पैंट लगवा दिया फिर उसकी माफ़ी को भी जल्दी नहीं दिखाया जा रहा और नमक - मिर्च लगाकर बेतुके प्वाइंटों को उठाया जा रहा है !!
          आखिर किस्के इशारे पर मीडिया ये सब कर रहा है ??? कौन है जिसका हाथ तरुण तेजपाल के सर पर है ??इतना बढ़िया शासन चलाने वाली गोआ सरकार को क्यों फ़ालतू में घेरा जा रहा है ??? मैं आपके सामने वो ई - मेल प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसमे वो पीड़िता को मानाने में लगे हैं ....पढ़कर आप ही सव्यं निर्णय कीजिये !!
          

तहलका के एडिटर तरुण तेजपाल और उनपर आरोप लगाने वाली जूनियर कॉलीग की नई मेल्स लीक हो गई हैं। ये वे शुरुआती ई-मेल्स हैं, जिनमें दोनों उस घटना के बारे में बात कर रहे हैं। एक ब्लॉग पर वह मेल पब्लिश की गई है, जो तरुण तेजपाल ने पीड़ित पत्रकार को 19 नवंबर को भेजी थी। यह उस घटना के बाद की पहली ई-मेल है।

तरुण तेजपाल ने लड़की को भेजी मेल में माफी मांगते हुए कहा कि वह घटना हल्के-फुल्के और फ्लर्टी मूड में हुई थी और हो सकता है कि मैंने हालात को समझने में गलती की हो। मगर 20 नवंबर को तेजपाल की इस मेल का जवाब देते हुए लड़की ने तेजपाल को बुरी तरह से लताड़ा है।

घटना के बाद दोनों में क्या बात हुई थी, हम इसके अंश पेश कर रहे हैं। दोनों के बीच जिन पॉइंट्स पर बात हुई, हम उन्हें एकसाथ बातचीत के अंदाज दे रहे हैं। इस ई-मेल में जिन बाकी लोगों का जिक्र किया गया था, उनके नाम हटा दिए गए हैं।

उस रात हुई घटना के बारे में

तरुण तेजपाल : जहां तक उस मनहूस रात की बात है, तुम याद करो तो हम नशे में, हंसी-मजाक और फ्लर्टी अंदाज में इच्छाओं और सेक्स के बारे में बात कर रहे थे। हम उस तूफानी शाम को हुई मुलाकात को याद कर रहे थे, जब मैं ऑफिस में बादलों को देख रहा था। मैं यह भी बताना चाहता हूं कि एक मौके पर तुमने कहा था कि आप बॉस हैं। इसपर मैंने कहा कहा था कि इससे तब तो और भी अच्छी बात है। लेकिन उसी दौरान मैंने कहा था कि इससे मेरे और तुम्हारे बीच के किसी रिश्ते का कोई लेना-देना नहीं है।

पीड़ित लड़कीः उस रात बातें न तो फ्लर्ट से भरी थीं और न नशे में की गई थीं। आप सेक्स और इच्छाओं के बारे में बात कर रहे थे, क्योंकि आप मुझसे बात करते वक्त अक्सर वही सब्जेक्ट चुनते हैं। अफसोस कि आपने कभी मेरे काम के बारे में बात नहीं की। और अगर आपने उसे पढ़ने के लिए वक्त निकाला होता, तो आपकी हिम्मत नहीं होती मेरा यौन उत्पीड़न करने की कोशिश करने की। आपको इस बात का भी अंदाजा होता कि इस सब के बाद मैं चुप बैठने वाली नहीं हूं। उस रात हमने किसी श्तूफानी शाम के बादलों की चर्चा भी नहीं की थी। मैं तो आपके साथ अपनी उस पहली स्टोरी के बारे में बात करना चाहती थी, जो एक रेप से बचने वाली लड़की के बारे में आपके साथ लिखी थी। ……… ने मुझे आपके ऑफिस में बुलाया। मैं अंदर गई, जहां बत्ती बंद करके काउच पर बैठे हुए थे। मैंने लाइट ऑन करने को कहा था तो आपने मना कर दिया था। आप काउच पर लेटे रहे। मैं आपके सामने चेयर पर बैठी रही और उस सर्वाइवर लड़की की कहानी आपको सुनाई। आपने भी उस प्रोफेशल वजह को ही याद किया था, न कि तूफान और बादलों को।

सहमति या असहमति के बारे में

तरुण तेजपाल: जब यह सब कुछ हुआ, उस दौरान मूड मस्ती और खुशमिजाजी भरा था। मुझे एक पल के भी नहीं लगा कि तुम नाराज हो। मुझे तब तक नहीं लगा कि यह सब तुम्हारी सहमति से नहीं हुआ, जब तक अगली रात …….. ने मुझे नहीं बताया। मैं शॉक में था और पूरी तरह से हिल गया था। ऐसा इसलिए, क्योंकि तुम्हें लगा था कि मैंने तुम्हारे साथ जबर्दस्ती की है(जो कि मेरा इरादा नहीं था)। मैं शॉक में था क्योंकि मैंने अपनी बेटी की करीबी दोस्त के साथ गैरजिम्मेदाराना और बेवकूफी भरा कुछ किया था। उस वक्त मैं बहुत शर्मिंदा हुआ और अब भी शर्मिंदा हूं। (जो बात सच नहीं है वह ये कि मैंने कभी धमकी का एक शब्द नहीं कहा।)’

पीड़ित लड़की: मेरी अहमति इससे जाहिर होती है जैसे ही आपने मुझपर हाथ रखा, मैंने आपको रुकने के लिए कहा था। मैंने हर उस शख्स और उसूल की दुहाई दी, जो हमारे लिए अहमियत रखते थे (आपकी बेटी, पत्नी, शोमा, मेरे पापा)। मैंने यह भी कहा कि आप मेरे एम्प्लॉयर हैं। लेकिन आप सुन नहीं रहे थे। आप रुके नहीं और मेरा उत्पीड़न करते रहे। अगली रात भी आपने ऐसा ही किया। तहलका की एडिट मीटिंग्स में हमने उन पुरुषों की बात की है जो दरिंदे बन जाते हैं। आपने भी अपनी स्टोरीज में इसका जिक्र किया है। क्या यही है उस सब की हकीकत, न को न नहीं समझना?

आपने सिर्फ मुझे को इस घटना के बारे में बताने पर न सिर्फ डांटा था, बल्कि अगली सुबह टेक्स्ट मेसेज भी भेजा था जिसमें लिखा था, श्मुझे यकीन नहीं हो रहा कि तुमने उसे इतनी मामूली बात बता दी।’ ‘तरुण, मुझे भरोसा नहीं होता कि तुम अपनी बेटी की दोस्त और उसकी उम्र की एम्प्लॉयी का उत्पीड़न के बारे में सोच भी सकते हो। क्या यह मामूली बात थी?

घटना के बारे में माफीनामा

तरुण तेजपाल: तुमने साफ कर दिया है कि मुझे समझने में ही गलती हुई। मैं तुम्हें आ रहे गुस्से और तुम्हें पहुंची ठेस को समझा हूं और इसपर कोई बात नहीं करूंगा। यह मेरी जिंदगी का सबसे बुरा पल है। जो कुछ हंसी-मजाक में हो रहा था, नहीं पता था कि उसका नतीजा इतना बुरा रहेगा। मुझे माफ कर दो और इसे भूल जाओ। मैं तुम्हारी मां से मिलूंगा और उनसे माफी मांगूंगा। तुम चाहोगी तो रुरुरुरु से भी माफी मांगने को तैयार हूं। मैं चाहता हूं कि तुम पहले की तरह ही तहलका के लिए काम करो और शोमा को रिपोर्ट करती रहो। तहलका और शोमा ने तुम्हें कभी निराश नहीं किया है। मेरी सजा मुझे मिल गई है और शायद मेरी जिंदगी के आखिरी दिन तक मुझे मिलती रहेगी।

पीड़ित लड़कीः आपकी …….. से माफी मांगने की इच्छा रखने से लग रहा है कि आप मुझे उसकी प्रॉपर्टी समझते हैं और खुद को उसके प्रति जवाबदेह मानते हैं। इससे तो आपकी उस पुरुषवादी सोच की बू आ रही है, जिसमें यह माना जाता है कि महिलाओं के शरीर पर पुरुषों का अधिकार है।

अगर आपको किसी से माफी मांगनी है, तो तहलका के उन कर्मचारियों से मांगिए, जिनके दिलों में आपने अपना सम्मान गिरा दिया है। प्लीज, आगे से मुझसे पर्सनल मेल करने की कोशिश मत करना। आपने यह अधिकार उसी वक्त खो दिया था, जब आपने मेरे विश्वास और शरीर पर हमला किया।

साभारः नवभारत टाईम्स
नई ई-मेल लीकः तेजपाल ने बताया कि ऐसा क्यों किया
Thursday, November 28, 2013, 8:14खबरों के पीछे
तहलका के एडिटर तरुण तेजपाल और उनपर आरोप लगाने वाली जूनियर कॉलीग की नई मेल्स लीक हो गई हैं। ये वे शुरुआती ई-मेल्स हैं, जिनमें दोनों उस घटना के बारे में बात कर रहे हैं। एक ब्लॉग पर वह मेल पब्लिश की गई है, जो तरुण तेजपाल ने पीड़ित पत्रकार को 19 नवंबर को भेजी थी। यह उस घटना के बाद की पहली ई-मेल है।

तरुण तेजपाल ने लड़की को भेजी मेल में माफी मांगते हुए कहा कि वह घटना हल्के-फुल्के और फ्लर्टी मूड में हुई थी और हो सकता है कि मैंने हालात को समझने में गलती की हो। मगर 20 नवंबर को तेजपाल की इस मेल का जवाब देते हुए लड़की ने तेजपाल को बुरी तरह से लताड़ा है।

घटना के बाद दोनों में क्या बात हुई थी, हम इसके अंश पेश कर रहे हैं। दोनों के बीच जिन पॉइंट्स पर बात हुई, हम उन्हें एकसाथ बातचीत के अंदाज दे रहे हैं। इस ई-मेल में जिन बाकी लोगों का जिक्र किया गया था, उनके नाम हटा दिए गए हैं।

उस रात हुई घटना के बारे में

तरुण तेजपाल : जहां तक उस मनहूस रात की बात है, तुम याद करो तो हम नशे में, हंसी-मजाक और फ्लर्टी अंदाज में इच्छाओं और सेक्स के बारे में बात कर रहे थे। हम उस तूफानी शाम को हुई मुलाकात को याद कर रहे थे, जब मैं ऑफिस में बादलों को देख रहा था। मैं यह भी बताना चाहता हूं कि एक मौके पर तुमने कहा था कि आप बॉस हैं। इसपर मैंने कहा कहा था कि इससे तब तो और भी अच्छी बात है। लेकिन उसी दौरान मैंने कहा था कि इससे मेरे और तुम्हारे बीच के किसी रिश्ते का कोई लेना-देना नहीं है।

पीड़ित लड़कीः उस रात बातें न तो फ्लर्ट से भरी थीं और न नशे में की गई थीं। आप सेक्स और इच्छाओं के बारे में बात कर रहे थे, क्योंकि आप मुझसे बात करते वक्त अक्सर वही सब्जेक्ट चुनते हैं। अफसोस कि आपने कभी मेरे काम के बारे में बात नहीं की। और अगर आपने उसे पढ़ने के लिए वक्त निकाला होता, तो आपकी हिम्मत नहीं होती मेरा यौन उत्पीड़न करने की कोशिश करने की। आपको इस बात का भी अंदाजा होता कि इस सब के बाद मैं चुप बैठने वाली नहीं हूं। उस रात हमने किसी श्तूफानी शाम के बादलों की चर्चा भी नहीं की थी। मैं तो आपके साथ अपनी उस पहली स्टोरी के बारे में बात करना चाहती थी, जो एक रेप से बचने वाली लड़की के बारे में आपके साथ लिखी थी। ……… ने मुझे आपके ऑफिस में बुलाया। मैं अंदर गई, जहां बत्ती बंद करके काउच पर बैठे हुए थे। मैंने लाइट ऑन करने को कहा था तो आपने मना कर दिया था। आप काउच पर लेटे रहे। मैं आपके सामने चेयर पर बैठी रही और उस सर्वाइवर लड़की की कहानी आपको सुनाई। आपने भी उस प्रोफेशल वजह को ही याद किया था, न कि तूफान और बादलों को।

सहमति या असहमति के बारे में

तरुण तेजपाल: जब यह सब कुछ हुआ, उस दौरान मूड मस्ती और खुशमिजाजी भरा था। मुझे एक पल के भी नहीं लगा कि तुम नाराज हो। मुझे तब तक नहीं लगा कि यह सब तुम्हारी सहमति से नहीं हुआ, जब तक अगली रात …….. ने मुझे नहीं बताया। मैं शॉक में था और पूरी तरह से हिल गया था। ऐसा इसलिए, क्योंकि तुम्हें लगा था कि मैंने तुम्हारे साथ जबर्दस्ती की है(जो कि मेरा इरादा नहीं था)। मैं शॉक में था क्योंकि मैंने अपनी बेटी की करीबी दोस्त के साथ गैरजिम्मेदाराना और बेवकूफी भरा कुछ किया था। उस वक्त मैं बहुत शर्मिंदा हुआ और अब भी शर्मिंदा हूं। (जो बात सच नहीं है वह ये कि मैंने कभी धमकी का एक शब्द नहीं कहा।)’

पीड़ित लड़की: मेरी अहमति इससे जाहिर होती है जैसे ही आपने मुझपर हाथ रखा, मैंने आपको रुकने के लिए कहा था। मैंने हर उस शख्स और उसूल की दुहाई दी, जो हमारे लिए अहमियत रखते थे (आपकी बेटी, पत्नी, शोमा, मेरे पापा)। मैंने यह भी कहा कि आप मेरे एम्प्लॉयर हैं। लेकिन आप सुन नहीं रहे थे। आप रुके नहीं और मेरा उत्पीड़न करते रहे। अगली रात भी आपने ऐसा ही किया। तहलका की एडिट मीटिंग्स में हमने उन पुरुषों की बात की है जो दरिंदे बन जाते हैं। आपने भी अपनी स्टोरीज में इसका जिक्र किया है। क्या यही है उस सब की हकीकत, न को न नहीं समझना?

आपने सिर्फ मुझे को इस घटना के बारे में बताने पर न सिर्फ डांटा था, बल्कि अगली सुबह टेक्स्ट मेसेज भी भेजा था जिसमें लिखा था, श्मुझे यकीन नहीं हो रहा कि तुमने उसे इतनी मामूली बात बता दी।’ ‘तरुण, मुझे भरोसा नहीं होता कि तुम अपनी बेटी की दोस्त और उसकी उम्र की एम्प्लॉयी का उत्पीड़न के बारे में सोच भी सकते हो। क्या यह मामूली बात थी?

घटना के बारे में माफीनामा

तरुण तेजपाल: तुमने साफ कर दिया है कि मुझे समझने में ही गलती हुई। मैं तुम्हें आ रहे गुस्से और तुम्हें पहुंची ठेस को समझा हूं और इसपर कोई बात नहीं करूंगा। यह मेरी जिंदगी का सबसे बुरा पल है। जो कुछ हंसी-मजाक में हो रहा था, नहीं पता था कि उसका नतीजा इतना बुरा रहेगा। मुझे माफ कर दो और इसे भूल जाओ। मैं तुम्हारी मां से मिलूंगा और उनसे माफी मांगूंगा।  तुम चाहोगी तो रुरुरुरु से भी माफी मांगने को तैयार हूं। मैं चाहता हूं कि तुम पहले की तरह ही तहलका के लिए काम करो और शोमा को रिपोर्ट करती रहो। तहलका और शोमा ने तुम्हें कभी निराश नहीं किया है। मेरी सजा मुझे मिल गई है और शायद मेरी जिंदगी के आखिरी दिन तक मुझे मिलती रहेगी।

पीड़ित लड़कीः आपकी …….. से माफी मांगने की इच्छा रखने से लग रहा है कि आप मुझे उसकी प्रॉपर्टी समझते हैं और खुद को उसके प्रति जवाबदेह मानते हैं। इससे तो आपकी उस पुरुषवादी सोच की बू आ रही है, जिसमें यह माना जाता है कि महिलाओं के शरीर पर पुरुषों का अधिकार है।

अगर आपको किसी से माफी मांगनी है, तो तहलका के उन कर्मचारियों से मांगिए, जिनके दिलों में आपने अपना सम्मान गिरा दिया है। प्लीज, आगे से मुझसे पर्सनल मेल करने की कोशिश मत करना। आपने यह अधिकार उसी वक्त खो दिया था, जब आपने मेरे विश्वास और शरीर पर हमला किया।

साभारः नवभारत टाईम्स

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मेरे ब्लॉग का नाम ये है :- " फिफ्थ पिलर-कोरप्शन किल्लर " !!
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आपका प्रिय मित्र ,
पीताम्बर दत्त शर्मा,
हेल्प-लाईन-बिग-बाज़ार,
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जिला-श्री गंगानगर।

Posted by PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.)
               

Wednesday, November 27, 2013

इस शून्यता से कैसे उबरेंगे ?(साभार )


     क्या यह वाकई इतना मुश्किल दौर है जब स्थापित मूल्यों की जड़ें हिल रही हैं और विकल्प की समझ मौका मिलते ही व्यवस्था का हिस्सा बनने को बेताब हो रही है। एक साथ तीन पिलर डगमगाये हैं। समाज को गूथे हुये परिवार । पत्रकारिता के जरीये सत्ता से टकराने का जुनून। राजनीतिक व्यवस्था पर अंगुली उठाकर बदलने का माद्दा। सीधे समझें तो आरुषि हत्याकांड, तरुण तेजपाल और आम आदमी पार्टी। आरुषि हत्याकांड ने परिवार की उस धारणा से आगे निकल कर भारत के उस पारंपरिक और मजबूत रिश्तों की डोर पर ना सिर्फ सीधा हमला किया जो समाज के गूंथे हुये हैं बल्कि आधुनिक भारत के उस परिवेश पर भी सवालिया निशान लगा दिया जो सरोकार और संबंधों को लगातार दरकिनार कर संवेदनाओं का तकनीकीकरण कर रहा है। वहीं तरुण तेजपाल का मतलब महज तहलका का मालिक होना या संपादक होते हुये अपने सहकर्मी या खुद के नीचे काम करने वाली पत्रकार का यौन शौषण भर नहीं है बल्कि जिस दौर में पत्रकारीय मूल्य खत्म हो रहे हैं। पत्रकारिता पेड न्यूज से आगे निकल कर कॉरपोरेट और राजनीति के उस कठघरे का हिस्सा बनने को तैयार है, जहां चौथा खम्बा तीन खम्बो पर खबरो की बेईमानी का लेप इस तरह चढ़ाये जिससे इमानदारी की चिमनी दिखायी दे, उस वक्त तहलका ने सत्ता से टकराने की जुर्रत ही नहीं की बल्कि रास्ता भी दिखाया। संयोग से बलात्कार के आरोप में फंसे तरुण तेजपाल की परतों को जब उसी मिडिया ने खोलना शुरु किया तो पत्रकारीय साख कहीं ज्यादा घुमिल लगी ही नहीं बल्कि तेवर वाली पत्रकारिता के पीछे गोवा की चकाचौंध से लेकर उत्तराखंड समेत तीन राज्यों में करोड़ों की संपत्ति का पिटारा खुल गया। वहीं जन जन के दिल से निकले अन्ना-केजरीवाल आंदोलन ने जब व्यवस्था पर चोट की और बदलाव के लिये विकल्प का साजो सामान तैयार किया तो साधन ने साध्य की ही कैसे हत्या कर दी यह आम आदमी पार्टी के मौजूदा त्रासदी ने जतला दिया। जब बिखरते साथियों के बीच अन्ना हजारे ने ही खुले तौर पर केजरीवाल को आंदोलन के सपने को राजनीतिक चुनाव के लिये बेचने के लिये अपने नाम के इस्तेमाल पर ही रोक लगाने को कह दिया। और झटके में अन्ना का लोकपाल, रामलीला मैदान का लोकपाल हो गया। तो क्या कोई सपना। कोई विकल्प। कोई आदर्श हालात को अब देश स्वीकार पाने या उसे सहेज पाने की स्थिति में नहीं है। और अगर नहीं है तो वजह क्या है। तो जरा सिलसिलेवार तरीके से हालात को परखे।


आरुषि हत्याकांड पर 210 पेज के फैसले के हर शब्द की चीत्कार को अगर सुने तो एक ही आवाज सुनायी देगी। और वह है मां-बाप का झूठ । हत्या के दिन से लेकर फैसले के दिन तक । लगातार साढे बरस तक हर मौके पर झूठ । असंभव लगता है। कोई लगातार इतने बरस तक झूठ क्यों बोलेगा। सिर्फ खुद को बचाने के लिये झूठ। या फिर बेटी के साथ मां-बाप के सबसे पाक और सबसे करीबी रिश्ता। जननी से लेकर गीली मिट्टी के गूथकर कोई शक्ल देने वाले कुम्हार की तर्ज पर बेटी को जिन्दगी देने और सहेजते हुये एक शक्ल देने वाले माता पिता की धारणा के टूटने से बचने के लिये झूठ। हालांकि अदालत के फैसले पर अंगुली उठाते हुये
आरुषी के मां-बाप अदालती न्याय को अन्नाय ही करार दे रहे हैं और समूची जांच में कुछ ना मिलने पर भी फैसला दिये जाने की परिस्थितिजन्य सबूतों को खारिज कर रहे हैं। लेकिन न्याय की कोई लकीर तो खींचनी ही होगी। और न्यायपालिका से इतर न्याय की लकीर खींचने का मतलब होगा अराजक समाज का न्यौता देना। तो फैसले के गुण-दोष से परे मां-बाप के बच्चों के साथ रिश्ते और खासकर आरुषी के साथ राजेश और नुपुर तलवार के सरोकार की हदों को भी समझना होगा। एक तरफ महानगरीय जीवन। चकाचौंध में छाने या पहुंच बनाने का जुनून। रिश्तों में खुलापन। संबंधों के पारंपरिक डोर को तोड़कर आधुनिक दिखने की चाहत। यह सब मां-बाप के लिये अगर ऑक्सीजन का काम कर रहा है तो फिर बेटी के अंतद्वंद को कौन समझेगा। बच्चों की बेबसी कहे या फिर गीली मिट्टी को कुम्हार कोई शक्त ना दे तो कैसे किसी टेड़े-मेढ़े पत्थर की तरह वह मिट्टी का ढेर हो जाता है और कितना वीभत्स लगता है, इसे कुम्हार के किसी भी बर्तन के बगल में पड़े देखकर कोई भी समझ सकता है और खुद कुम्हार को भी इसका एहसास होता है। तो तीन सवाल आरुषि के मां-बाप को लेकर हर जहन में उठ सकते है। पहला, हत्या के हालात में गुस्सा आरुषी की जिन्दगी जीने के तौर तरीके पर था। दूसरा, हत्या के पीछे खुद को लेकर गुस्सा था तो बेटी को सहेज ना सके। उसे जिन्दगी जीने की कोई शक्ल ना दे सके। तीसरा , यह महज तत्काल के हालात थे। अगर तीनों परिस्थितियों को मिला भी दें तो भी पहली और आखिरी उंगुली मा-बाप को लेकर ही उठेगी। क्योंकि एक तरफ आधुनिक भारत के साथ तेज तेज चलने की दिशा में बढ़ते मां बाप के कदम और दूसरी तरफ मध्यमवर्गीय परिवेश में आधुनिक और पंरपरा के बीच झूलती आरुषि। यह इसी दौर का सच है जब पूंजी हर रास्ते को आसान करने की परिभाषा गढ़ रही है। तकनीक रिश्तों की जगह ले रही है। और जिन्दगी चकाचौंध भरी ताकत की आगोश में खोने का नाम हो चला है। तो दोष किसका है और क्या यह भविष्य के भारत की पहली दस्तक है। जो ऑनर के नाम पर हारर किलिंग की हद से भी आगे की तस्वीर है। इसे रोक कौन सकता है। शायद सिस्टम। शायद सत्ता की नीतियों से बनती व्यवस्था।

तो सिस्टम और सत्ता पर नजर रखने के लिये ही तो तहलका के जरीये तरुण तेजपाल ने शुरुआत की थी। याद कीजिये एनडीए की सत्ता के दौर में पेशेवर पत्रकार भी स्वयंसेवक लगने लगे थे। कांग्रेस के वजूद पर बीजेपी नेता अंगुली उठाने लगे थे। आडवाणी तब यह कहने से नहीं चूक रहे थे कि अब तो राष्ट्रपति प्रणाली आ जानी चाहिये। उसी दौर में तेजपाल के स्टिग आपरेशन ने एनडीए सत्ता की चूलें हिलायी थीं। और तब पत्रकारों ने पहली बार महसूस किया था कि कोई मीडिया संस्थान सत्ता से टकराने के लिये खड़ा हो सकता है। और तब तहलका पत्रिका निकालने की योजना बनी । तहलका को ना सत्ता की मदद चाहिये थी और ना ही कारपोरेट की। चंदा लेकर तहलका शुरु हुई। उस वक्त जिन लोगों ने चंदे दिये उसमें कई लोगो ने तो रिटायरमेंट के पैसे भी चंदे के तौर पर तहलका को दे दिये। 13 बरस पहले के उस दौर में तहलका की नींव रखी गयी, जब मीडिया धीरे धीरे कारपोरेट के लिये आकर्षण का केन्द्र बनने लगे थे। और तहलका प्रतीक बनता चला गया ऐसी पत्रकारिता का जो सत्ता से सीधे टकराने से हिचकती नहीं और आम जनता की पूंजी पर आम पाठकों के लिये आक्सीजन का काम करने लगी। लेकिन तेरह बरस के सफर में कैसे तरुण तेजपाल स्कूटर चलाते चलाते खुद में कारपोरेट बन गये और कई शहरो में की संपत्तियों के मालिक हो गये, इसे कभी किसी ने टोटलने की हिम्मत नहीं की। और अब सोचें तो, की भी होती तो कोई भी ऐसी रिपोर्ट को पत्रकारीय मूल्यों पर हमला करार देता। लेकिन जैसे ही बलात्कार के आरोप में तेजपाल फंसे और जैसे ही तेजपाल ने खुद को देश की कानून व्यवस्था से उपर मान कर आरोप को स्वीकारते हुये छह महीने के लिये तहलका के पद को छोड़ने का ऐलान किया, वैसे ही पत्रकारीय जगत अफीम की उस खुमारी से जागा जो तरुण तेजपाल ने तहलका की रिपोर्टों के जरीये पिलायी थी। और झटके में यह सवाल बड़ा हो गया कि क्या अपराध करने वालो के बीच आम और खास की कोई लकीर होती है। और क्या वाकई कोई यौन शोषण कर आत्म ग्लानी करें तो कानून को अपना काम नहीं करना चाहिये। ध्यान दें तो तरुण तेजपाल ऐसा सोच सकते है, यह अपने आप में किसी के लिये भी झटका है। क्योंकि तहलका की पत्रिका ने ही जब अपनी रिपोर्ट से सत्ता पर हमला बोलना शुरु किया तो हर आम पाठक और हर सामान्य पत्रकार को पहली बार महसूस हुआ कि विशेषाधिकार किसी का होता नहीं और अपराधी तो अपराधी ही होता है। चाहे ताबूत घोटाले में कभी जार्ज फर्नाडिस फंसे या फिर सत्ता के मद में चूर मोदी । लेकिन खुद को सजा देने का जो तरीका तरुण तेजपाल ने अपनाया और उसके बाद तेजपाल की निजी संपत्ति से लेकर तहलका के कारोबार का पूरा लेखा-जोखा जब सामने आने लगा तो कई सवाल हर जहन में उठे और बलात्कार के आरोप लगने के बाद भी पीड़ित लड़की को ही कठघरे में खड़ा करने के तेजपाल के अलग अलग तर्कों ने एक बार पिर पत्रकारिय जगत को उसी निराशा में ढकेल दिया जहा साख बनाकर उसे बेचने या खुद को भी उसी सत्ता का हिस्सेदार बनाने की कवायद तरुण तेजपाल ने भी की। शायद वजह भी यही रही कि तहलका पत्रिका के तेवर मौजूदा दौर में चाहे धीरे दीरे कमजोर होते जा रहे थे लेकिन कोई दूसरा मीडिया संस्थान भी इस दौर में खड़ा हुआ नहीं जो सत्ता से टकराये या बिना कारपोरेट चले तो तहलका की मान्यता बनी रही। और तरुण तेजपाल के निजी सरोकार भी आम लोगों से कट कर उस खास कटघरे में पहुंच गये, जहां तरुण तेजपाल को यह लगने लगा कि उसका कद इतना बड़ा हो चुका है कि कहां हुआ हर शब्द कानून पर भी भारी पड़ेगा। यानी देश के उस मिजाज को ही तरुण तेजपाल बलात्कार के आरोपी बनने के बाद समझ नहीं पाये कि जमीन की पत्रकारिता शिखर पर तो पहुंचा सकती है लेकिन शिखर पर होने का दंभ कभी आत्मग्लानी की जमीन पर टिकता नहीं है। और हो यही रहा है। लेकिन यह उस तहलका की मौत है जिसने पत्रकारों को लड़ना और विकल्प खड़ा करना सिखाया था।

विकल्प की सोच तो अन्ना-केजरीवाल के आंदोलन से भी शुरु हुई और व्यवस्था परिवर्तन ही नहीं मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था पर भी सीधी अंगुली उठाकर आंदोलन ने पहली बार हर उस तबके को संसद के सामानांतर सड़क पर ला खड़ा किया जो राजनीतिक व्यवस्था को लेकर गुस्से में था। गुस्सा आंदोलन को तो व्यापक बना सकता है लेकिन आंदोलन ही परिवर्तन की सत्ता में तब्दील हो जाये यह होता नहीं और हुआ भी नही। लेकिन व्यवस्था परिवर्तन के लिये आंदोलन सरीखा हथियार अर्से बाद भारत की जनता को जगा गया। लेकिन आंदोलन की जगह अगर राजनीतिक दल ही हथियार बन जाये और राजीनितक चुनाव के जरीये ही व्यवस्था परिवर्तन का सवाल उठे तो फिर सबकुछ साधन पर टिक जाता है। सीधे समझे तो महात्मा गांधी के साध्य और साधन वाली थ्योरी को .हा समझना जरुरी है । अगर आम आदमी पार्टी चुनाव को भी आंदोलन की शक्ल में ढालती तो क्या अन्ना हजारे यह कहने की हिम्मत जुटा पाते कि उनके नाम का इस्तेमाल आम आदमी पार्टी ना करें । दरअसल अन्ना ने जिस तरह अपने नाम को जनलोकपाल से बडा माना और आम आदमी पार्टी ने भी अन्ना के नाम को लोकपाल से जोड कर अन्ना हजारे की गैर मौजूदगी में भी चुनावी राजनीति में अन्ना की मौजूदगी को दिखाने की कोशिश की उसने व्यवस्था परिवर्तन की उस सोच पर तो सेंध लगाया ही जो आंदोलन के दौर में खड़ी हुई थी। यानी जनलोकपाल के आंदोलन की साख पर आम आदमी पार्टी ही चुनावी तौर तरीकों से बट्टा लगाती हुई इसलिये दिखायी देने लगी क्योंकि आंदोलन समूचे देश का था। जंतर-मंतर और रामलीला मैदान हर शहर में बना था। लेकिन आम आदमी पार्टी ने पार्टी के टिकट पर चुनाव लडने वाले सदस्यो पर ही समूचे आंदोलन का बोझ डाल दिया । यानी जो आंदोलन देश के बदलाव का सपना था उससे निकले राजनीतिक पार्टी के सदस्यो के चुनावी जीत ही पहला और आखिरी सपना दिखायी देने लगा। इसलिये अन्ना के पत्र के बाज जो भी थोथे आरोप आम आदमी पार्टी पर लगे उससे भी आम आदमी पार्टी घायल होती चली गयी क्योंकि चुनाव लड़ने वाले सतही है। उनके सपने उनके संघर्ष बदलाव से पहले खुद की जीत चाहते है। और जीत के बाद बदलाव की सोच को भारती समाज मान्यता इसलिये नहीं देता क्योंकि चुनावी जीत सत्ता बनाती है। जबकि आंदोलन सत्ता के खिलाफ होते है । शायद इसीलिये दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ने वालों के चरित्र भी उसे हर दूसरे राजनीतिक दल की कतार में ही खड़ा करते हैं। चाहे करोड़पति उम्मीदवारों की बात हो या दागी उम्मीदवारों की। एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 70 में से 35 करोड़पति और 5 दागी आम आदमी पार्टी में भी है। फिर पार्टी के संगठन पर आंदोलन की हवा कुछ इस तरह हावी है जैसे दिल्ली में हर काम नीतियों के आसरे होता हो। यानी हर वह सवाल जो अन्ना-केजरीवाल के आंदोलन के दौर में उठा और देश बदलाव का सपना देखने लगा । वही सवाल आम आदमी पार्टी के चुनाव प्रचार के तौर तरीकों के सामने नत-मस्तक हो गये ।

यानी हर स्तर पर सपने टूटे । संघर्ष थमा । रिश्तो का दामन छूटा । विकल्प का सवाल उपहास लगने लगा और आंदोलन सत्ता की मद में मलाई बनाने का साधन हो गया। अजब संयोग है मौजूदा वक्त में समाज और सत्ता के सामने परिवार से लेकर संघर्ष बेमानी लगने लगे । और सिस्टम ने खुद को एकजुट कर अपने खिलाफ संघर्ष को ही कुछ इस तरह सिस्टम का हिस्सा बना लिया कि हम आप मानने लगे कि अब इस शून्यता से कैसे उबरेंगे।

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पीताम्बर दत्त शर्मा,
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Posted by PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.)

Tuesday, November 26, 2013

" मतदाताओं को उलझाया जा रहा है लालच और झाँसे देकर ,तो दूसरी तरफ जीतने वाले के इर्द-गिर्द मण्डराने लगे हैं तरह-तरह के माफ़िया लोग " !!

चुनाव आयोग के अफसर बड़े ही मज़बूर दिखायी पड़ रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि जो ताकत संविधान ने उन्हें दी है वो केवल चुनाव संपन्न होने तलक ही है उसके बाद तो इन्ही नेताओं के नीचे ही उन्हें काम करना है ! इसी डर के चलते हुए ज्यादातर अफसर अपना कर्तव्य नहीं निभा पाते हैं !!सिर्फ खानापूर्ती होती ही दिखायी दे रही है !!
                   दूसरी और कई प्रत्याशियों ने अपने मतदाताओं को लुभाना - बहकाना और झांसे में लाकर फँसाना भी शुरू कर दिया है !! कंही शराब पकड़ी जा रही है तो कंही नकदी बांटी जा रही है !! आरोप एक दुसरे पर लगाये जा रहे हैं ! अपनी गलती कोई नहीं मान रहा , सब अपने आपको पाक-साफ़ और दुसरे को दोषी बताने में लगे हुए हैं !!
            तीसरी तरफ जो माफिया के लोग कोंग्रेस सरकार के रहते अपनी झोलियाँ भर रहे थे , वो ही लोग अब भाजपा और अन्य पार्टियों के प्रत्याशीयों के इर्द-गिर्द मंडराते दिखायी पड़ते हैं ! कोई भी प्रत्याशी उन लोगों को अपने से दूर रहने हेतु नहीं बोल रहा क्यों ?? मेहनत तो पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्त्ता करते नज़र आते हैं लेकिन उनकी विज्ञप्तियों में उनके नाम नज़र ही नहीं आते और ना ही कोई उन्हें शाबाशी देता नज़र आ रहा है क्यों ??


                     मतदाता को बड़े ही विचार-विमर्श के बाद ही अपना वोट किसी पार्टी या प्रत्याशी को देना होगा ! हर मतदाता को अपना मतदान भी अवश्य करना चाहिए !! क्योंकि यही वो असली ताकत है जो उसे केवल एक बार मिलती है, पूरे पांच वर्षों के बाद !! इसी ताकत के प्रयोग से ही आज के ज़माने में हम चाहे उस राजनितिक दल की सरकार बना सकते हैं और कोई भी सरकार गिरा भी सकते हैं !! आज भारत में किसी तीर-तलवार या किसी बन्दूक से क्रान्ति नहीं लायी जा सकती !! सिर्फ अपने वोट का सही प्रयोग करके ही शासन बदला जा सकता है !!
               पाँच वर्ष पहले भारत वासियों को ये वोट रुपी ताकत मिली तो ज्यादातर लोगों ने पंजे के निशान वाला बटन दबाया तो भारत में कोंग्रेस नीत u.p.a. की सरकार बनी  ! जिसकी गलतियों की सज़ा हम आज तलक भुगत रहे हैं ! फिर हमें ये ताकत मिली तो हमने फिर पंजे वाला ही बटन दबाया और राजस्थान में श्री अशोक गहलोत जी की सरकार बनी जिनकी गलत नीतियों और योजनाओं के शिकार हम आज तक हो रहे हैं ! फिर हमें तीसरी बार यही वोट वाली ताकत मिली तो भी हमने पंजे वाला बटन दबाकर कोंग्रेस पार्टी को ही अपना वोट दिया तो सूरतगढ़ में श्री बनवारीलाल हमारे चेयरमैन बने !! जिन्होंने आज तलक कभी भी अपनी इंजनियरिंग नहीं दिखायी और बिना लेबल की सड़के और नालियां बनाकर सरकार का सारा पैसा डबोकर रख दिया !!
                       भ्रष्टाचार और अनैतिक सम्बन्धों के कारण केंद्र और राज्य के कई नेता आज जेलों में बैठे हैं !! चेयरमैन बनवारीलाल पर भी बलात्कार का केस चल रहा है साथ में इस काम में उनके दो पार्षद भी सहयोगी हैं ! नगर पालिका के कई घोटालों में कोंग्रेस के कई नेता , इ ओ और चेयरमैन  की जांच आज भी चल रही है !!
                पानी-बिजली आती नहीं लेकिन बिल पांच गुना बढ़ कर आ रहे हैं !! सब्जी दालें और गैस के भावों ने तो महिलाओं को परेशान करके रख दिया है !! फिर भी कोंग्रेसी नेता ना जाने किस मुंह से वोट मांग रहे हैं !! दूसरी छोटी पार्टियों के बहकावे में तो हरगिज़ किसी को भी नहीं आना चाहिए , क्योंकि उन पार्टियों के नेता ,तो दिल्ली में सोनिया गांधी जी के साथ हमारे वोटों का थोक में सौदा करके मंत्री बनते हैं ! इसलिए जनता को अब सिर्फ यही तलाशना है कि कौन सा नेता और दल हमें कम लूटेगा ??? क्योंकि कलयुग में सतयुगी लोग तो हमको मिलेंगे नहीं !! इसलिए मित्रो
                  मेरी नज़र में वो दल केवल भारतीय जनता पार्टी है जो हमें देश-भक्ति , धर्म पर चलने और जीवन में संस्कार ग्रहण करने तथा सिद्धांतों पर चलने के नामपर सबसे कम लूटती है !! सुराज लाने की बात तो करती है !! इसलिए आप से प्रार्थना है कि आप भाजपा को अपना वोट देकर कम से कम नुक्सान में रहने वाला काम करें !!
                बाकी भली करेगा ---- राम !! जय हो !!
          
            


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मैं भी बन सकता हूं पीएम? -अशोक मिश्र !! ( saabhaar )


मैं आफिस में बैठा कतरब्योंत कर रहा था कि एक आदमी मेरे पास आया और बोला, ‘भाई जी! मुझे आपसे कुछ सलाह करनी है। सुना है कि आप सलाह बहुत अच्छी देते हैं। आपकी जो भी फीस होगी, मैं भुगतने को तैयार हूं।’ मैंने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और धीरे से उसके कान में फुसफुसाया, ‘आप आफिस के बाहर चाय की दुकान पर पहुंचिए, मैं आता हूं।’ थोड़ी देर बाद मैंने चाय की दुकान पर पहुंचकर उससे कहा, ‘हां..अब बताइए, आपकी क्या प्रॉब्लम है?’
                                 उस आदमी ने चाय सुड़कते हुए कहा, ‘भाई जी..मैं पार्टी बनाना चाहता हूं। राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी..क्या मैं बना सकता हूं?’ मैंने भी चाय जोर से सुड़कते हुए कहा, ‘हिंदुस्तान में चोरों को पार्टी बनाने का हक है, छिछोरों को है, बटमारों और लुटेरों को भी यह हक हासिल है। दागियों को है, बेदागियों को है, तो फिर आपको यह हक क्यों नहीं है। आप तो भले मानुष दिखते हैं। होंगे भी, ऐसा कम से कम मुझे तो विश्वास है। ऐसे में भला आपको कौन रोक सकता है। आप शौक से बनाएं पार्टी, मुझसे भी जो मदद हो सकेगी, मैं करूंगा।’
                                      उस आदमी ने मेरी ओर गौर से देखते हुए कहा, ‘आप शायद मुझे पहचान नहीं पाए हैं। मुझ पर एक नाबालिग से बलात्कार करने का आरोप है। पांच राज्यों की पुलिस मुझे खोज रही है। अब बताइए, मैं राजनीतिक पार्टी बना सकता हूं कि नहीं?’ उसके यह कहते ही इस सर्दी में भी मेरे माथे पर पसीना चुहचुहा आया। मैंने कांपती आवाज में कहा, ‘हां..अब भी आप पार्टी बना सकते हैं, चुनाव लड़ सकते हैं। आप एक काम कीजिए, पहले अदालत में आत्मसमर्पण कीजिए। फिर दो-चार महीने बाद जमानत करवाइए और राजनीतिक पार्टी बनाइए। इसमें कोई रोक नहीं है।’ उस आदमी ने अपने चेहरे को मफलर से ढकते हुए कहा, ‘आपको बता दूं, मेरे पास अकूत संपत्ति है। ज्यादातर कमाया हुआ नहीं, कब्जाया हुआ है। नकली नोटों को छापने का बड़ा लंबा चौड़ा कारखाना है।
                                 अफीम से लेकर नशीले ड्रग्स तक बेचने का कारोबार मेरे संरक्षण में चलता है। देशी-विदेशी हथियारों की सप्लाई का उत्तर भारत का टेंडर मेरे ही पास है। सौ-पचास अधिकारी मेरे से हफ्ता पाते हैं। दुनिया भर के काले-गोरे धंधों को करने की मास्टर डिग्री मेरे ही विश्वविद्यालय से दी जाती है। दाउद इब्राहिम और छोटा राजन से लेकर ओसामा बिन लादेन अपनी ही यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट रह चुका है। अपनी फैमिली बैकग्राउंड के बारे में बताऊं, तो आप ताज्जुब रह जाएंगे। मेरे बापू ने तो मेरे से भी महान हैं। उनके बारे में अगर बताने लगूं, तो पूरा पोथन्ना तैयार हो जाए। फिर कभी फुरसत में मिलूंगा, तो बताऊंगा। बस, यह बताओ कि अगर लोकसभा चुनाव में मैं खड़ा हो जाऊं, तो क्या प्रधानमंत्री बन जाऊंगा? मेरे जीवन की बस एक ही तमन्ना है कि किसी तरह प्रधानमंत्री बन जाऊं। भले ही उसके लिए कितना पैसा खर्च करना पड़े। किसी को खरीदना-बेचना पड़े, निबटना-निबटाना पड़े, कोई चिंता नहीं है। बस..किसी तरह प्रधानमंत्री पद का जुगाड़ लग जाए।’ मैंने चाय का खाली कप डस्टबिन में फेंकते हुए कहा, ‘आप चिंता न करें। राजनीति में ऐसे ही लोग आते हैं। चोर-लुचक्के, बटमार, हत्यारे, बलात्कारी, छिछोरे...इनसे तो पूरी की पूरी भारतीय राजनीतिक किसी बंद कमरे में रखे कीटनाशक ‘गमकसीन’ पाउडर (रासायनिक नाम नहीं मालूम) की तरह मह-मह कर महक रही है। संविधान ने सबको चुनाव लड़ने, मंत्री-संत्री, विधायक-सांसद बनने की छूट दी है। अब यह आपकी काबिलियत है कि आप जनता से वोट कैसे हासिल करते हैं, डरा कर, धमकाकर, पुचकार कर, नोट-पानी देकर या किसी और तरीके से।
                                         अब अगर आपका कोई खेल बिगाड़ सकता है, तो ‘नोटा’ (नॉन आफ दी एबव) वाला बटन। इस ससुरा बटन न हुआ, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र हो गया। खच्च..से गला काट देगा आप जैसे लोगों का। वैसे तो हमारे देश के राजनीतिक गलियारे दागियों से हमेशा आबाद रहे हैं। आप क्या...आपके बाप तक देश और प्रदेश की सत्ता हथिया चुके हैं।’ मैंने देखा कि बाप कहने पर उसकी भौंहें तनने लगी थीं। सो, मैंने व्याख्या करते हुए कहा, ‘आपके बाप से मेरा मतलब है कि अपराध की दुनिया में आपसे चार जूता आगे रहने वाले लोग तक सत्ता हासिल करके मौज मार चुके हैं। इधर जब से माननीय अदालत दागियों को लेकर सख्त हुई है, तब से थोड़ा दिक्कत पैदा होने लगी है। जब तक आपको सजा नहीं सुनाई जाती और आप जेल में नहीं हैं, तब तक तो चांस कहीं गया नहीं है।’मेरी बात सुनते ही उस आदमी ने कहा, ‘बस..बस..आपकी बात मेरी समझ में आ गई। जनता को भरमाने, डराने-धमकाने का जिम्मा मेरा रहा। वैसे अब तक अपने आश्रम में मैं अपने भक्तों को भरमाता ही तो रहा हूं। मेरा इतना प्रभाव है कि लोग सौ-पांच सौ करोड़ रुपये पानी की तरह बहाने को तैयार हैं।
                                                      
 बस, उन्हें यह लगना चाहिए कि मेरी पार्टी बहुमत में आ सकती है और मैं प्रधानमंत्री बन सकता हूं। इसके बाद तो वे जितना खर्च करेंगे, उससे पचास गुना ज्यादा वे कमा ही लेंगे।’ इतना कहकर वह आदमी उठा, जेब से उसने रिवाल्वर निकाला और मुझे गोली मारते हुए कहा, ‘सॉरी दोस्त! मैं पकड़ा इसलिए नहीं गया, क्योंकि सुबूत नहीं छोड़ता।’ उसके और अपने हिसाब से तो मैं मर ही गया था, लेकिन चाय वाले ने अस्पताल   पहुंचाकर मुझे बचा लिया।

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R.C.P. रोड, सूरतगढ़ !
जिला-श्री गंगानगर।

Posted by PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.)

Sunday, November 24, 2013

" अफवाहों के भरोसे क्या जीत पाएंगे गंगाजल मील " ????

जब अपने साथ उन्हें कोई चलता नज़र नहीं आया तो उनके चेलों ने सुझाया मील साहिब को " अफवाहों " का टोटका , परन्तु वो भी चलता नज़र नहीं आ रहा है !!
               क्योंकि जो भी अफवाह सूरतगढ़ के कोंग्रेस्सी समर्थकों द्वारा फैलायी जाती है दुसरे ही दिन भादू और गेधर के समर्थकों द्वारा गलत साबित कर दी जाती है !!
                              पहले तो ये खबर फैलायी गयी कि भादू जी के समर्थन में नगर मंडल के नेता नहीं हैं लेकिन आम जनता के सामने सभी एक मत हो कर चलते नज़र आये जनता को सारे भाजपा के पदाधिकारी !
                          फिर उड़ाई गयी कि श्री अशोक नागपाल भादू के साथ नहीं है तो वो भी बाज़ार में उनके साथ वोट मांगते नज़र आये !
                          फिर कॉंग्रेस्सियों ने ये अफवाह फैला दी कि गावों में श्री राजिंदर भादू का बिलकुल भी प्रभाव नहीं है लेकिन जिस भी गाँव में भादू जी ने नुक्कड़ सभा की वंहा-वंहा हज़ारों की भीड़ देखी गयी और सबने उनको वोट देने हेतु आश्वस्त भी किया !!
                  जब केंद्र में श्री नरेंद्र मोदी जीके प्रभाव और परदेश में श्रीमती वसुंधरा राजे जी के प्रभाव के कारण राजस्थान में एक लहर सी चल रही है और सूरतगढ़ कि जनता ही नहीं बल्कि पूरा राजस्थान ही भाजपा कि सरकार बनती देखना चाहती है !!


                         जब कोंग्रेस्सी भाजपा के खिलाफ अफवाहें उड़ाते उड़ाते थक गए और देखा कि वो अपने मकसद में कामयाब नहीं हो रहे तो उन्होंने ये कहना शुरू कर दिया कि सूरतगढ़ के बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी श्री डूंगर राम गेधर भारी पड़ रहे हैं जिसे जनता थोडा थोडा मानने लगी तो कॉंग्रेस्सियों के फिर घबराहट होने लगी वो फिर पलटी खा गए !
                                  फिर अफवाह उड़ाई के अब मील साहिब तो बस जीते ही पड़े हैं। लेकिन वाह री जनता तेरे भी करतब निराले हैं ये अफवाह फिर भी कामयाब नहीं हो पायी !!
                         आजकल पूरी हताशा ही हताशा फैली हुई है कोंग्रेस के खेमे में !! क्योंकि ना तो उनकी नुक्कड़ सभाओं में जनता आती है और नाही उनके कार्यालय में कोई ठोस कार्यकर्त्ता नज़र आते हैं !!
                         कोंग्रेस के कई पदाधिकारी मील जी से नाराज़ हैं यंहा तलक कि सूरतगढ़ के चेयरमैन बनवारी लाल जी , बलराम वर्मा , भी पूरे मन से उनके साथ नहीं हैं क्योंकि मुसीबत में मील साहिब उनके साथ नहीं थे !!
                            कोंग्रेस के एक पार्षद चरणजीत सिंह टंडन तो बगावत करके भादू जी के खुले समर्थन में आगये और उन्होंने भाजपा ज्वाइन करली !! इसी तरह एक पुख्ता सूचना के अनुसार कोंग्रेस के तीन और पार्षद और डायरेक्टर जल्द ही भाजपा में शामिल हो सकते हैं !!
                              
उनके साथ सेंकडों समर्थक भी कोंग्रेस पार्टी को नमस्कार कह सकते हैं !!
                  दूसरी तरफ श्री राजिंदर भादू जी के साथ हर कोई अपने को जुड़ा हुआ पाता है !! इसलिए सूरतगढ़ में तो भाजपा के जितने कि ही सम्भावना है !
                  
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Saturday, November 23, 2013

कंहाँ गए भाजपा के वो नेता जो पद बांटते थे निष्ठावानों को और कंहा गए वो कार्यकर्त्ता जो निस्वार्थ भाव से पार्टी हेतु काम करते थे ???

" बेतरतीब चुनाव प्रबन्धन , भाजपा के संगठन पदाधिकारियों के चुनाव में दिखायी ना देने , भाजपा देहात मंडल के कार्यकर्ताओं का कंहीं अता - पता न होने और प्रत्याशियों के नज़दीकियों का चुनाव प्रक्रिया से अनजान होना " जीत से दूर कर रहा है विधायक पद से प्रत्याशियों को !
 कंहाँ गए भाजपा के वो नेता जो पद बांटते थे  निष्ठावानों को और कंहा गए वो कार्यकर्त्ता जो निस्वार्थ भाव से पार्टी हेतु काम करते थे ???
             आज जन-जन के मस्तिष्क में यही प्रश्न कौंध रहा है !!क्योंकि जनता भी भाजपा की रीतियों-नीतियों को पसंद करती है और पार्टी व  संगठन की सभी गतिविधियों पर अपनी पैनी नज़र बनाये रखती है !! वो चाहती है कि और चाहे जो पार्टी या उसके नेता कितने भी भ्रष्ट हों या निकम्मे हों लेकिन भाजपा के तो बिलकुल भी भ्रष्ट और निकम्मे ना हों चाहे जनता उसे चुने या ना चुने क्योंकि सत्य को हमेशां अपना अस्तित्व बनाये रखना पड़ता है चाहे वो सतयुग हो या कलयुग !!


                 देश में पांच राज्यों के विधान-सभाओं के चुनाव हो रहे हैं जनता सब राजनितिक दलों व उनके नेताओं को तोल - परख रही है ! लेकिन सिक्के का एक दूसरा पहलू भी आज मैं आपके सामने रखना चाहता हूँ ! चुनावों के मौसम में जंहाँ सच्चाई,सिद्धांतों और व्यक्तित्व की बात बड़े ही जोर-शोर से होने लगती है , क्या मीडिया क्या छोटा  और क्या बड़ा, सब सतयुग की कामना करने लग जाते हैं , नेताओं से बड़ी बड़ी आस लगा लेते हैं ! तो दूसरी और कुछ लोग चुनावों में अपने प्रत्याशियों की बोटी-बोटी नोच कर उसे खा जाना चाहते हैं ! सोचते हैं कि ये भी इन्हीं बीस दिन हेतु ही हमारे काबू में आया है , निचोड़ लो ससुरे को !! ऐसे लोगों में तक़रीबन सभी " वर्गों और व्यवसायों " के लोग शामिल होते हैं !! और सब जानते हैं लेकिन आज सब चुपके से " माल " अंदर कर लेना चाहते हैं कल कि कल देखि जायेगी !!
                      लेकिन यही वो बात है जो किसी को शरीफ बनने ही नहीं देती !! इसीलिए सब दोष दूसरों को ही देने हेतु अपनी ऊँगली सामने वाले की  तरफ ताने ही रहते हैं !! राजस्थान में हो रहे विधानसभा चुनावों में ऐसी ही हालत दिखायी दे रही है !! भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेंद्र मोदी जी का काम देखकर और उनकी बात में बसी सच्चाई को समझ कर जनता ने अपना मन बना लिया है कि वो देश के अगले प्रधानमंत्री होने ही चाहिए !! लेकिन जब वो अपने प्रत्याशियों और उनके समर्थकों को देखती है और उनके द्वारा भूतकाल में किये गये कार्यों को समझती है तो तनिक घबरा जाती है !! भविष्य में आने वाली मुसीबतों की शंकाएं उसे पहाड़ की तरह खड़ी दिखायी देने लगती हैं !!
                      इसीलिए राजस्थान में भाजपा के 200 में से 180 विधायक तो पक्के माने जा रहे थे जो अब कम होते-होते 110 की संख्या तलक पंहुच गए हैं !!भाजपा  प्रत्याशियों को फूंक-फूंक कर कदम उठाने कि सख्त आवश्यकता है ! अपने दोस्तों और दुश्मनो को पहचानना भी होगा और बड़े ही तरीके से दोनों प्रकार के कार्यकर्ताओं से अपना काम भी करवाना होगा !! क्योंकि नुकसान पंहुचने वाला मधुर भी बोलता है और चुगलियाँ भी करता है !! हमारी और से तो सबको ढेर सारी शुभकामनाएं !!
                       
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Wednesday, November 20, 2013

साभार !! पत्रकारिता का संकटकाल नहीं, संपादकों और पत्रकारों का संकटकाल.......!!


-दिलीप सी मंडल||
यह पत्रकारिता का संकटकाल नहीं है. यह संपादकों और पत्रकारों का संकटकाल है. उन महान संपादकों का दौर गया जो गलत खबर दिखाकर दंगा करा पाते थे, छात्रों को आत्मदाह के लिए उकसा पाते थे, जो यह दंभ पाला करते थे कि वे सरकारें बना और बिगाड़ सकते हैं.journalism
प्रिंट और टीवी मीडिया में आई बहुलता तथा सोशल मीडिया और इंटरनेट के विस्फोट ने पत्रकारिता को सूचनाओं और समाचारों के लाखों स्रोतों के दौर में पहुंचा दिया है. अब प्रश्न यह नहीं है कि पत्रकार कौन है, बल्कि सवाल यह है कि पत्रकारिता कौन कर रहा है. अगर आप सूचनाएं और समाचार लोगों तक पहुंचा रहे हैं, तो आप पत्रकारिता की नौकरी न करते हुए भी पत्रकार हैं.
अब लागों के पास सच जानने के सैकड़ों-हजारों तरीके हैं. पाठक और दर्शक लगातार सीख रहा है और मैच्योर हो रहा है कि विश्वसनीय समाचार कहां से ले. पत्रकारों के लिए विश्वसनीय बने रहने और विश्वसनीय दिखने की गंभीर चुनौती है.
खासकर इसलिए भी कि मीडिया की आंतरिक संरचनाएं और इसके अपने खेल-तमाशे अब लोक-विमर्श के दायरे में हैं. लोग यह मीमांसा करने लगे हैं कि ऐसी खबर क्यों दिखाई जा रही है और कोई खबर क्यो नहीं दिखाई जा रही है.
मीडिया निरक्षरों के युग के अंत का अर्थ, तथाकथिक महान संपादकों के युग का अंत भी है.
(दिलीप सी मंडल की फेसबुक वाल से)
किस ओर जा रहा है पत्रकारिता का भविष्य…-प्रदीप राघव||
मैं बदला, तुम बदले, समाज बदला, और तो और आधुनिक युग में लोगों की मानसिकता तक बदली तो भला पत्रकारिता क्यों ना बदलती. कुर्ता पायजामा पहने, दाढी बढ़ाए, माथे पर अजीब सी शिकन, हाथ में झोला लिए एक साहब से मुलाकात हुई. मैं उन्हें देखकर ही भांप गया कि वो एक पत्रकार हैं. क्योंकि मैंने माखनलाल चतुर्वेदी जैसे बड़े-बड़े पत्रकारों के बारे में पढ़ा है और अच्छी तरह सुना भी.
आजकल के दौर में इस तरह के पत्रकारों को ढूंढना बेवकूफी से कम नहीं क्योंकि इस तरह के पत्रकार आजकल होते ही नहीं. कौन कम्बख्त आजकल दाढी बढ़ाना, हाथ में झोला लेना और खादी का कुर्ता-पायजामा पहनना पसंद करता है. खैर, मैं उन भाईसाहब से पूछ बैठा, क्यूं मियां आप पत्रकार है ना. गर्दन हिलाते हुए कहने लगे, चलो कोई तो है जो हमें पहचानता है, वरना आजकल तो लोग हमें भिक्षु समझ लेते हैं. मैं हंसने लगा और कहने लगा ,ऐसी बात नहीं है पत्रकार साहब. पत्रकारों की तो आजकल
बहुत वेल्यू होती है. हां, टेलीविजन और प्रिंट की पत्रकारिता में जरूर कुछ फर्क दिखाई पड़ता है. टेलीविजन में वो लोग चेहरे पर क्रीम-पाउडर पोतकर स्टूडियो में बैठ समाचार पढ़ते हैं जबकि अखबार के पत्रकार गली-कूचों में जाकर लोगों की मानसिकता का जायजा लेते हैं. दरअसल आजकल समाचार चैनल टीआरपी की होड़ में कुछ अनाप-शनाप चीज़ें परोस जाते हैं. तो मेरी नजर में तो आप ही उन लोगों से श्रेष्ठ हैं.
वो जोर-जोर से हंसने लगे, कहने लगे बस मियां इतनी तारीफ काफी है. कुछ देर और गुफ्तगूं हुई फिर हम लोग अपने-अपने गंतव्य को चल दिए. दरअसल वो एक बहुत पुराने अख़बार के पत्रकार थे चूंकि टेलीविजन की पत्रकारिता से कहीं ज्यादा सहूलियत रखने वाली प्रिंट की पत्रकारिता है क्योंकि यहां ब्रेकिंग न्यूज़ नामक समाचार चैनलों का दीमक नहीं होता लेकिन आधुनिक युग में हो रहे बदलावों की झलक अब प्रिंट मीडिया में
भी दिखाई पड़ती है हालिया कुछ घटनाओं से आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं. हालांकि गंदगी सभी जगह पर है टेलीविजन के पत्रकारों पर लगे कलंकों से इस बात की पुष्टि होती है. वैसे भी आधुनिक दौर में अगर आपको अच्छे पत्रकारों की झलक दिखाई देगी तो वो भी थोड़ी बहुत प्रिंट मीडिया में न कि इलेक्ट्रॉनिक में. आधुनिक युग में पत्रकारिता में अनेकों बदलाव हुए हैं. रामनाथ और माखनलाल जी जैसे उस दौर में बहुत से अच्छे पत्रकार थे जबकि आजकल ऐसे पत्रकार ढूंढे से भी नहीं मिलते जो कहीं पर किसी भी ऐसी श्रेणी में आते हों.
हालांकि प्रिंट के भी बहुतेरे पत्रकारों का नाम इनमें शामिल है. इन बातों से ऐसा प्रतीत होता है कि कहीं ना कहीं पत्रकारिता का भविष्य अंधेरे की ओर जरूर जा रहा है. जिस तरह से हर जगह हुए बदलावों ने आम आदमी की जिंदगी को आसान बना दिया है क्या उसी प्रकार पत्रकारिता में हो रहे नए-नए बदलाव पत्रकारिता को उज्जवल भविष्य की ओर ले जा रहे हैं या फिर अंधेरे की ओर ढकेल रहे हैं.
(लेखक इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े पत्रकार हैं)
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Tuesday, November 19, 2013

राजस्थान भाजपा, गहलोत सरकार कि गलतियाँ - घोटालों को, आमजन तक पंहुचाने में नाकाम साबित हुई !! क्या सभी दलों के नेता आपस के सम्बन्धों को ज्यादा महत्त्व देने लगे हैं ??

               नेताओं को अपने " राजनितिक - धर्म "  का पालन अवश्य करते रहना चाहिए ! सत्ता पक्ष को जनहित की योजनाएं बनाने , उनको सही रूप में लागू करने के साथ-साथ बढ़िया विदेश नीति  , शिक्षा नीति  और वित् व्यवस्था एवं सुरक्षा व्यवस्था के प्रति हमेशां जागरूक रहना चाहिए ! तो वंही विपक्ष का भी ये धर्म है कि वो सरकार में काम करने वाले नेता या उसे लागू करने वाले प्रशासन में कंही कोई कमी या कोई बड़ा घोटाला नज़र आता है तो वो ना सिर्फ उसको उजागर करे बल्कि लोकतंत्र के नियमों अनुसार दोषियों को सज़ा दिलाने हेतु धरने प्रदर्शन करती रहे और दोषियों को " बे - नक़ाब " करने का काम करे !!
                         दोनों पक्षों को अपने सहयोग हेतु मिडिया का भी भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए !! लेकिन आजकल जो देखने में आ रहा है वो ये कि मिडिया सत्ता पक्ष कि मदद उसके घोटाले छिपाने में ज्यादा सहयोग कर रहा है और विपक्ष को आपस में लड़ाने के प्रयास में ही रहता है ! इस कार्य हेतु वो सरकारी अनुदान प्राप्त करने वाले N.G.O.और पत्रकारों का उपयोग भी बड़ी चतुराई से करता है ! जिनके उदहारण हमें रोज़ाना टीवी चेनलों पर होने वाली बहसों में शामिल होने वाले विद्वानो के विचारो को सुन कर भलीभांति आभास होता ही रहता है !
          मिडिया को रामायण की " मन्थरा " कि तरह नहीं बल्कि महाभारत के " संजय " तरह जनता और सरकार को सत्य बताना चाहिए !! जिसमे विपक्ष की गलतियों का " मसाला " लगा हो !!
                 आइये पिछले पांच सालों में गहलोत सरकार की गलतियों , मंत्रियों के घोटाले व सेक्स स्केंडलों और विपक्ष कि खामियों पर भी एक नज़र डालें ! विपक्ष के नेता , विधायक , पूर्व मंत्री ,पूर्व चेयरमैन , जिला-प्रमुख ,पूर्व प्रधान कभी किसी सत्ता पक्ष के नेता के खिलाफ सीधे तौर पर धरने या आमरण अनशन पर बैठे और नाही किसी नेता के गलत कार्य के खिलाफ कोई ठोस प्रदर्शन किया ! किया तो सिर्फ इतना कि प्रेस नोट जारी कर दिया , पुतले जला दिए और एक दो बार भाषण दे दिए !! बस हो गयी फार्मेलिटी !! ये तो कहा कि भरष्ट चार हो रहा है लेकिन ये नहीं कहा गया कि किसने किया है और ना ही किसी के खिलाफ कोई सज़ा कि मांग कि गयी !!
                 जबकि सता पक्ष के घोटालों पर केंद्र के एक भाजपा नेता श्री किरीट सोमैया जी ने राजस्थान में आकर तब घोटालों पर एक " ब्लैक - पेपर " जारी किया जब इस सरकार का कार्यकाल पूरा होने को था ! वो भी प्रेस कॉन्फ्रेंस तक ही चला बाद में किसी नेता ने इसे नहीं उठाया !! चुनावों में भी किसी नेता ने इन घोटालों और सेक्स स्केंडलों कि बात तलक नहीं की  भला क्यों ??? क्या इन नेताओं के निजी सम्बन्ध ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं ??
                 राबर्ट वाड्रा का " सोलर-लैंड घोटाला " !!
केंद्रीय मंत्री श्री चिदमबरम के पुत्र व सचिन पायलेट द्वारा किया गया " 108-घोटाला " !! गहलोत जी का सवयम के परिवार का"खनन - घोटाला " ! आदि सैंकड़ों ऐसे घोटाले हैं जिन पर सरकार ने कोई संतोषजनक जवाब आज तक नहीं दिया है !! बल्कि गहलोत और सोनिया जी ने सेक्स स्केंडल में फंसे आरोपों में फंसे अपने नेताओं के परिवार वालों को अपनी कोंग्रेस पार्टी का प्रत्याशी बनाकर ये साबित किया है कि वो भ्रष्टाचार के विरोधी नहीं बल्कि पक्षधर हैं !!
                       अब फैसला जनता को करना है !! देखते हैं आनेवाली एक दिसंबर को " समझदार - जनता " क्या निर्णय सुनाती है !! क्योंकि भाजपा में भी,  हर सीट पर अनेकों मुश्किलें दिखायी दे रही हैं ! चाहे वो बागियों कि समस्या हो या फिर " भीतर-घाटियों " की !! जीत के प्रति  आश्वस्त अभी ना तो कोंग्रेस पार्टी है और ना ही भाजपा  !!


                     सूरतगढ़ में भी भाजपा कार्यकर्त्ता एक दुसरे को अज़ीब सी नज़रों से " तौलते " हुए से दिखायी पड़ते हैं ! एक दुसरे से फिर तसल्ली करते हुए से दिखायी दे रहे हैं ! जो आज से 5 दिन पहले श्री राजिंदर भादू की इकतरफा जीत मानकर चलते थे वोही आज गंगाजल मील जी को मुकाबले का मान रहे हैं ! तो कोई बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी श्री डूंगर राम गेधर को जीत के नज़दीक मान रहा है !! ऐसे विचारो के उठने के  कारन वो कानाफूसी करते हुए ये बताते हैं कि :-
                              1. जो पहले टिकेट मांग रहे थे वो और उनके आदमी क्या मन से श्री राजिंदर भादू जी के साथ लगे हुए हैं ?? साथ ही उनका कहना ये भी है कि कासनिया जी  के प्रति ऐसा नहीं है क्यों कि कासनिया जी जो कहते हैं वो ही करते हैं !
                   2. आफिस का प्रबंधन कागज़ों में और कार्यालय में तो सही दिखायी दे रहा है लेकिन नगर और देहात मंडल द्वारा बनाये गए बूथ कमेटियों के पदाधिकारी , मोर्चों के सदस्य , और प्रकोष्ठों के कार्यकर्त्ता फील्ड में दिखायी नहीं पड़  रहे !! चुनाव सञ्चालन कमेटी कि अभी तक कोई मीटिंग नहीं हुई है ! कार्यकर्ताओं को बताया गया कार्य ऑपरेट हो रहा है या नहीं इसको चेक करने वाला भाजपा के कार्यालय में कोई नहीं है !!
                   3. सूरतगढ़ के भाजपा नेताओं के पिछले इतिहास कि भी चर्चा आमजन में हो रही है कि फलाना नेता पिछले चुनावो में कंहाँ था  उससे पहले कंहाँ था और आज यंहा क्या कर रहा है ??
                   यानि विश्वास कि कमी स्पष्ट रूप से भाजपा कार्यालय और उसके आसपास देखी जा रही है !! श्री राजिंदर भादू जी को इस बारे में गहनता से सोचने और अपनी रणनीति को तेज़ धार देने की  सख्त जरूरत है !!
                                
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Posted by PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.)

Thursday, November 14, 2013

" चुनावी दंगल सूरतगढ़ विधानसभा का , 19 नेता व हज़ारो कार्यकर्त्ता मिलकर करेंगे अपना अपना प्रदर्शन और जनता करेगी सही निर्णय 1 दिसम्बर 2013 को " ???

पूरे राजस्थान में सूरतगढ़ विधानसभा का चुनाव अपना एक विशेष महत्त्व रखता है !!क्योंकि यंहा पर चुनावों में राजनीती अपने चरम पर रहती है ! लोगों का कहना है कि मीलों और वसुंधरा जी में श्री राजिन्द्र राठोड़ के कारन 36 का आंकड़ा है ,शायद इसीलिए इसबार पूरे राजस्थान में ये चर्चा का विषय है ! शायद यही कारण था कि यंहा के भाजपा नगर और देहात्मंडल के अध्यक्षों ने श्रीमती वसुंधरा जी को ही आमंत्रित कर डाला वो तो उन्होंने समझदारी से काम लिया कि छोटे झमेले में वो नहीं पड़ीं !
                       कोंग्रेस पार्टी के प्रत्याशी श्री गंगाजल मील के इलावा यंहा से भाजपा के श्री राजिंदर भादू, बसपा के श्री डूंगर राम गेदर , जमींदारा पार्टी के श्री अमित कड़वासरा , राष्ट्रीय जनता पार्टी के श्री पवन सैनी , शिव सेना के श्री ओम प्रकाश राजपुरोहित , जागो पार्टी से श्री पवन कुमार मिश्र , भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से श्री महावीर प्रसाद तिवाड़ी , मेघदेशम् पार्टी के श्री मोहनलाल , राष्ट्रवादी कोंग्रेस पार्टी से जनाब अब्दुल गफ्फार , बहुजन संघर्ष दल से श्री मनसुख , और राजस्थान विकास पार्टी से श्री देवेन्द्र सिंह सहित 7उमीदवार निर्दलिय नेता मैदान में आ गए हैं जिनके नाम ये हैं :- सर्वश्री यशपाल सिंह, श्रवणराम , विक्रम कुमार,प्रिंस सिंह , रेखासोनी उर्फ़ रीता सोनी ,खूबचंद नायक और जनाब इस्लामुद्दीन !! 


                           अभी सबकी निगाहें 16तारीख पर अटकी हुई है क्योंकि वो अपना नामांकन वापिस लेने का अंतिम दिन है !! कुल 20उम्मीदवारो ने अपने 24 नामांकन फार्म दाखिल किये थे जिनमे से श्री शीशपाल का नामांकन रद्द किया गया क्योंकि उनके प्रस्तावक कम थे !वैसे अब किसी के नाम वापिस लेने कि सम्भावना कम ही है क्योंकि 12 प्रत्याशी तो राजनितिक दलों से ही हैं !! लेकिन मुख्य मुकाबला भारत कि दो बड़ी राजनितिक पार्टियों में ही माना जा रहा है ! बाकी अपना वज़ूद कितना है ,यही बता पाएंगे !?
                          कई मतदाता तो एक दुसरे को " टटोलने " में ही लगे हुए हैं कि कौन किधर है अंदर से ??? सट्टा बाज़ार के खिलाडी तो पूरे राजस्थान का ही आंकलन किये बैठे हैं और छुटभैये नेता और शर्तें लगाने वाले लोग उनसे ही जानकारियां एकत्रित करके अपनी नेतागिरी भी चमका रहे हैं और अपनी जेबें भरने का सपना संजोये बैठे हैं !!
                         प्रत्याशियों के तूफानी दौरे शुरू हो चुके हैं , मालाएं पहनाईजा रही हैं , वादे किये जा रहे हैं , डोरे डाले जा रहे हैं , कंही पर प्रत्याशियों को केलों से टोला जेन लगा है तो कंही नेताओं को ही धमकाया जा रहा है या यूं कहें कि " यरकाया " जा रहा है ! मज़े कि बात तो ये है कि नातो कंही घोटालों का असर नज़र आ रहा है और नाही कंही मंहगाई और सेक्स स्केंडलों का !! सिर्फ स्थानीय मुद्दे जो केवल नगर पालिका और पंचायत समिति स्तर के ही हैं , वो ही आम जनता के मुख पर आ रहे हैं !! ये भी देखने को आ रहा है कि जनता किसी भी पार्टी को " अछूत " नहीं मान रही है चाहे उस पार्टी के नेताओं ने कितने भी बुरे काम क्यों ना किये हों !!
                       इन्हीं बातों के सामने आने से बड़े राजनितिक दलों के नेता आज भी अहंकारे घुमते फिर रहे हैं !! जंहाँ तलाक छोटी पार्टियों और निर्दलिय प्रत्याशियों का सवाल है तो जनता समझ रही है कि ये भी देर - सवेर कोंग्रेस के साथ ही चले जायेंगे या फिर " बाहर " से समर्थन देने के नाम पर बिक जायेंगे !! और नहीं तो साम्प्रदायिकता का पुराना बहाना भी काम में लाया जा सकता है !!
                     अभी तो किसी निर्णय पर पंहुचना जल्द बाज़ी होगी क्योंकि ज़ुमा-ज़ुमा खेल शुरू हुए चार दिन ही तो हुए हैं आप भी इन नेताओं कि पूरी फ़िल्म देखिये और हम भी आंकलन कर-कर के आप को बताते जायेंगे क्योंकि हम भी श्री नारद-मुनि जी के शिष्य हैं !! बोलिये जय श्री राम।
                   इतना तो मैं बता ही सकता हूँ आपको कि u.p.a. सरकार के दोबारा चुने जाने के वक्त अगर किसी सब्ज़ी का भाव 20/- किलो से ज्यादा होता था तो हैम उसे खरीदने के पक्ष में नहीं होते थे कोई दूसरी सब्जी लेकर अपने घर को आ जाते थे ऐसा ही कई अनाजों के भावों के साथ भी होता था लेकिन आज देखो हम बिना किसी घबराहट के 100/- किलो के हिसाब से प्याज़ और टमाटर तक को खरीदकर अपने घर को विराजते हैं !! उस पर हमारे नेताओं - मन्त्रियों के बयान आग में घी डालने वाले ही होते हैं !
           खुदा - खैर करे !!
                        
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"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

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