Wednesday, March 6, 2013

cut - CUT ........शार्ट कट..............!!



शार्ट कट से भी शार्टकट, प्रारंभ से आदमी तलाश करता रहा है ,चलने में -बोलने में, लिखने में , और जिन खोजा तिन्ह पाइया ,उन्हे रास्ता मिला भी । जब आर से काम चलता है तो ए आर इ क्या मतलब। जब यू से काम चल सकता है तो वाय ओ यू का क्या मतलब । और इसी तरह पिताजी पापा होते हुये डैडी से डैड हो गये । शार्टकट रास्ते में कोई टेडा मेडा रास्ता नहीं देखता और शार्टकट भाषा में कोई शुध्दता अशुध्दता नहीं देखता। और वैसे भी शुध्द अंग्रेजी कोई बोल नहीं सकता और शुध्द हिन्दी कोई समझ नहीं सकता तो रोमन ही सही ।

अभी शासकीय कार्यालयों में शार्टकट का प्रयोग शुरु नहीं हुआ है। इ मेल से भी डाक नहीं भेजी जाती फैक्स से भेज कर फिर कन्फर्मेशन कापी डाक से भेजी जाती है, वाकायदा ड्राफट तैयार होता है वह एप्रूव होता है, उंची कुर्सी वाला नीची कुर्सी वाले का ड्राफट एप्रूव करता है, वैसा का वैसा ही एप्रूव कर दिया तो मतलब ही नहीं, कुछ न कुछ गलती तो निकालना आवश्यक है ही। अच्छा एक मजेदार बात शासकीय शब्द कुल 100-150 है उन्ही से हजारों पत्र, परिपत्र, अर्धशासकीय पत्र, तैयार होते रहते है । एक भी विजातीय शब्द इसमें आजाये तो बात अखरनेवाली हो जाती है। ब्लाग पढता रहता हूं तो कुछ शब्द सामर्थ्य बढ गया है,मैने एक दिन एक शब्द का पर्याय बाची शब्द लिख दिया तो मेरी पेशी हो गई देखिये मिस्टर यह कार्यालय है कोई साहित्यिक संगठन या सभा नहीं है, शब्द वही प्रयोग करो जो शासकीय हो। और पता भी चलना चाहिये कि पत्र सरकारी है। अच्छा देखिये मुझे व् और ब का फर्क आज भी समझ नहीं आता लेकिन हजारों ड्राफ्ट ,एप्रूव किये

भैया हम तो गांव के है वही बोली वही लहजा , यध्यपि बच्चों को पसंद नहीं है । मेरी खडी बोली इन्हें रास नहीं आती । हालांकि कुछ कहते नहीं मगर समझ में आही जाता है, इशारों को अगर समझो । और तो और ये भी बच्चों से कहती ही है बेटा तेरे पापा तो शुरु से ही गवांरों जैसा बोलते है भले आदमियों के बीच बिठादो तो नाक कट जाती है। वाह एक न शुद दो शुद .

एक दिन पुत्र रत्न ने कह ही दिया आपकी बोली और लहजे पर मेरे मित्र हंसते है उसी दिन मैने तय किया कि बोलूंगा तो शुध्द हिन्दी ही बोलूँगा नहीं तो नहीं बोलूँगा । की प्रतिज्ञा । पुराने जमाने में लोग प्रतिज्ञा करते ही रहते थे उस समय जब हाथ उठा प्रतिज्ञा कर करते थे तब वादल गरजने लगते थे ,हवा की रफतार तेज हो जाती थी ,विजलियां कडकने लगती थी ,मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ ।

एक दिन घर में मित्र मंडली जमी थी ,मैने पुत्र से जाकर कहा भैया मेरे व्दिचक्र बाहन के पृष्ठचंक्र से पवन प्रसारित होगया है शीघ्रतिशीध्र वायु प्रविष्ठ करवा ला ताकि मुझे कार्यालय प्रस्थान में अत्यधिक विलम्ब न हो। मै तो कह कमरे से चला आया किन्तु मैने सुनली- पुत्र का एक मित्र कह रहा था क्यों रे तेरे पापा का एकाध पेंच ढीला तो नहीं होगया ।

मेरे पडौस में एक बहिनजी रहती है ठेठ देहाती ,प्रायमरी स्कूल में बहिनजी की नौकरी लग गई तो परिवार यहां आगया। एक दिन बहिन जी के स्कूल की अध्यापिकाऐं उनके घर आई तो तो बहिन जी बोलने का लहजा, शब्द सब बदले , बोली बिल्कुल शहरी हो गई, बहिन जी के छोटे भाई बहिन भोचक्के होकर दीदी को देखने लगे । आखिर सबसे छोटी से न रहा गया तो बोल ही उठी काये री जीजी आज तोय का हो गओ आज तू कैसे बोल रई है

मजा तो अब है रोमन भी और शार्टकट भी
लिखा_ चाचा जी अजमेर गया है
पढा _ चाचाजी आज मर गया है

1 comment:

"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...